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अनगार
धम०
मलोत्सर्ग दुःस्वप्न या दुश्चिन्तन प्रभृतिका अतीचार लगजानेपर अन्तर्मुहूर्त दिन पक्ष यद्वा महीना आदि कालका प्रमाण करके उतने समय तक देहसे ममत्व छोडकर प्रशस्त ध्यानको धारण करके खडे रहनेको व्युत्सर्ग कहते हैं। किसी किसीने नियत समयतक मन वचन कायके परित्यागको व्युत्सर्ग बताया है।
तप प्रायश्चित्तका लक्षण बताते हैं :कृतापराधः श्रमणः सत्त्वादिगुणभूषणः ।
यत्करोत्युपवासादिविधि तत्क्षालनं तपः ॥ ५२ ॥ जो तपस्वी सत्व धैर्य आदि अनेक गुणों से अलंकृत है फिर भी उससे किसी प्रकारका अपराध बनगया -विधिविहित आचरणका अतिक्रमण होगया उस अवस्थामें यदि वह अपने अपराधका प्रक्षालन करनेके लिये उपवास एक स्थान आचाम्ल निर्विकृति आदि बाह्य तपोंको करता है तो उसकी इस क्रियाको तप नामक प्रायश्चित्त कहते हैं।
___ ऊपर आलोचनादिक छह प्रकार के प्रायश्चित्तका स्वरूप बताया है। अब यह बताते हैं कि किस किस अपरा. धके विषयमें ये प्रायश्चित्त करने चाहिये।
भयत्वराशक्त्यबोधविस्मृतिव्यसनादिजे ।
महाव्रतातिचारेमुं षोढा शुद्धिविधि चरेत् ॥ ५३॥ भयत्वरा-डरकर भाग जाना, अशक्ति-सामर्थ्य की हीनता, अबोध-अज्ञान, विस्मृति-विस्मरण, व्यसन-यवनादिकोंका आतङ्क, इसी तरहके रोग अभिभव आदि और भी अनेक कारणोंसे महावतोंमें अतीचार लगजानेपर तपस्वियोंके उपयुक्त छह प्रकारकी शुद्धिविधि-प्रायश्चित्त करनी चाहिये ।
अध्याय