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अनगार
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क्रमप्राप्त धर्मस्वाख्यातत्व नामकी बारहवीं अनुप्रेक्षाका वर्णन करनेकेलिये केवलि भगवान के द्वारा निरूपित और तीन लोकमें अद्वितीय मंगलरूप तथा सम्पूर्ण लोकमें उत्तम धर्मके प्रकट होनेकी आशा करते हैं:
लोकालोके रविरिव करैरुल्लसन् सत्क्षमाद्यैः, खद्योतानामिव घनतमोद्योतिनां यः प्रभावम् । दोषोच्छेदप्रथितमहिमा हन्ति धर्मान्तराणां,
स व्याख्यातः परमविशदख्यातिभिः ख्यातु धर्मः ॥ ८ ॥ सम्पूर्ण पदार्थोकी विशेषताओंको स्पष्टतया प्रकाशित करने में कुशल और उत्कृष्ट ज्ञानके धारण करनेवाले सर्वज्ञ भगवान्ने चौदह गुणस्थानों में गति आदिक चौदह मार्गणास्थानोंमें जो आत्मतत्वका विचार होता है उसको अथवा वस्तुओंके यथावत् स्वरूपको व्यवहार और निश्चय दोनो ही नयोंसे समीचीन धर्म बताया है । मैं चाहता हूं कि सभी जीवोंके तथा मेरे भी यह धर्म उदभूत हो और सदा प्रकाशमान बना रहे। क्योंकि मिथ्यात्वरूपी निबिड अन्धकारमें नाम मात्रको प्रकाश करनेवाले खद्योतोंके समान वेदादिनिरूपित धर्मोंके माहात्म्यको नष्ट करनेवाला धर्म यही है। जिस प्रकार सूर्यका प्रकाश होनेपर खद्योतोंका प्रकाश नष्ट होजाता है उसी प्रकार इस धर्मके प्रकट होते ही इतर धर्मोंका महत्व हृदयमेंसे नष्ट होजाता है । और जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणोंके द्वारा चकवा चक के आलापोंको उल्लसित किया करता है उसी प्रकार यह धर्म भी अपने उत्तमक्षमा मार्दव आर्जव आदि किरणोंके द्वारा भव्य जीवोंके अन्तरङ्गमें सम्बग्दर्शनको प्रकाशित किया करता है । जिस प्रकार सूर्यका महत्व रात्रिको नष्ट करदेनेमें प्रख्यात है उसी प्रकार इस धर्मका माहात्म्य मी रागद्वेषादिक दोषोंके निर्मूल करनेमें प्रद्विस है।
अहिंसा ही एक ऐसा धर्म है कि जिसका फल अक्षय सुख है । अत एव इस धर्मको ही सबसे अधिक दुर्लभ, सम्पूर्ण शब्दब्रह्म-सिद्धांत वचनोंका प्राण समझना चाहिये । इसी बातको प्रकट करते हैं:
अध्याय