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बनगार
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जैसे कि अमुक गली या बाजारमें प्रवेश करनेके बाद यदि भिक्षाका लाभ होगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं; ऐसा संकल्प करना । अथवा इसी प्रकार एक दो आदि संख्याकी अपेक्षा गली कूचोंमें आहारके लिये प्रवेश करनेका संकल्प करना । तथा पाटक निवसनविषयक संकल्पका स्वरूप भी कई प्रकारसे है-कोई कोई कहते हैं कि पाटक निवसनसे केवल मुहल्लाकी ही भूमिके स्पर्श करनेका संकल्प किया जाता है। उसके भीतर बने हुए घरोंकी भूमिके स्पर्श करनेका संकल्प नहीं किया जाता । कोई कहते हैं कि घरकी परिकरभूमि-आसपासकी जमीनका स्पर्श करके आहार ग्रहण करनेके संकल्पको निवसनसंकल्प कहते हैं। और कोई कोई मुहल्लाकी तथा घरके आसपासकी ऐसे दोनों ही भूमियों में प्रवेश करके आहार ग्रहण करने के संकल्पको पाटक निवसनके संकल्पमें लेते हैं।
इसी प्रकार भिक्षाके विषयमें भी संकल्प किया जाता है । जैसे कि एक ही भिक्षा ग्रहण करूंगा या दो ही ग्रहण करूंगा, अधिक नहीं; इत्यादि । अथवा भिक्षाको अनियत रखकर, इतने ही ग्रास लूंगा, अधिक नहीं; या इतनी ही वस्तुओंको लूंगा, अधिकको नहीं। यद्वा इतने कालतक ही भिक्षा लूंगा, अथवा इसी कालमें भिक्षा लूंगा. बाद में नहीं; ऐसा भी संकल्प किया जाता है । इसी तरह दातृक्रियाका भी संकल्प किया जाता है । जैसे कि एक ही दाता भोजन देगा तो ग्रहण करूंगा अथवा दो या तीन मिलकर आहार देंगे तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं । इत्यादि । जैसा कि कहा भी है कि
गत्वा प्रत्यागतमृजुविधिश्च गोमूत्रिका तथा पेटा । शम्बूकावर्तविधिः पतङ्गवीथी च गोचर्या ॥ पाटकनिवसनभिक्षापरिमाणं दातृदेयपपरिमाणम् । पिण्डाशनपानाशनखिञ्चयवागूर्वतयति सः ॥ संसृष्टफलकपरिखा पुष्पोपहृतं च शुद्धकोपहृतम् । लेपकमलेपकं पानकं च नि:सिक्थकं ससिक्थं च ॥ पात्रस्य दायकादेरवग्रहो बहुविधः स्वसामर्थ्यात् । इत्येवमनेकविधा विज्ञया वृत्तिपरिसंख्या ।
अध्याय