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अमगार
धर्म
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ख्यान किया जासकता है । इस प्रकार दाताके सम्बन्धसे अनेक प्रकारके संकल्प हो सकते हैं।
गमनके सम्बन्धसे--जिस गली में होकर जाना पडता है उसमें घुसते ही यदि भोजनका निमित्त मिलेगा तब तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं । इसी प्रकार गली में प्राञ्जल, गोमूत्रिकाके आकार, अथवा चतुरस्राकार, यद्वा भीतरसे लेकर बाहर निकलने तक, या शलभमालाके भ्रमणकी तरह अथवा गोचोंके आकारमें भ्रमण करते हुए आज भोजनके लिये मुझे कोई पडगावेगा तो ठहरूंगा, अन्यथा नहीं । इत्यादि गमनके निमित्तसे भी अनेक तरहका संकल्प हुआ करता है।
पात्रके सम्बन्धसे--भी विविध प्रकारका संकल्प किया जाता है । यथा-आज मुझे सुवर्णपात्र में यदि कोई आहार देगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं । इसी प्रकार चांदी कासा तांबा पीतल मट्टी आदिके बने हुए अथवा उसके किसी अवान्तर भेदके विषयमें भी संकल्प किया जा सकता है।
अन्नके विषयमें--आज मुझे पिण्डभृत आहार, अथवा द्रवरूप पेय पदार्थ, यद्वा लपसी, या मसूर चना जब आदि अन्न मिलेगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार शाक कुल्माषादिसे मिला हुआ भोजन मिलेगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं । यद्वा चारो तरफ शाक और बीचमें भात रक्खा हुआ मिलेगा तो भोजन करूंगा अन्यथा नहीं । इसी तरह चारों तरफ व्यञ्जन और बीचमें या एक तरफ अन्न, या अनेक व्यञ्जनोंके बीचमें पुष्पावली की तरह रक्खा हुआ सिक्थक अथवा निष्पाचादिसे मिला अन्न, यद्वा केवल शाक या व्यञ्जनादिक, हाथ जिसमें लिप्त होजाय या न हो सके ऐसी चीज, झोलदार या वगेर झोलका पदार्थ या और किसी पानक प्रभृति पदार्थके निमित्तसे भी ऐसा संकल्प किया जा सकता है कि यदि ऐसा भोजन मिलेगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा
नहीं।
गृह विषयमें-अमुक अमुक मकानोंमें या इतने ही मकानोंमें भोजनके लिये प्रवेश करूंगा, अधिकमें नहीं। इत्यादि । आदि शब्दसे गली बाजार भिक्षा और दातृक्रिया आदिका संकल्प भी सभझलना चाहिये ।
अश्व
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१ जिसमें पानीका भाग कम हो ऐसे रंधे हुए दाल खीचडी आदि आहारको और सत्त को भी सिक्थक कहते हैं।