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अनगार
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अध्याय
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鹽鹽鹽蒸
उपावृत्तस्य दोषेभ्यो यस्तु वासो गुणैः सह । उपवासः स विज्ञेयः सर्वभोगविवर्जितः ॥
अशनादिक चार प्रकार के भोजनका लक्षण बताते हैं
ओदनाद्यशनं स्वाद्यं ताम्बूलादि जलादिकम् ।
पेयं खाद्यं त्वपाद्यं त्याज्यान्येतानि शक्तितः ॥ १३ ॥
भात दाल दलिया खिचडी आदि भोज्य सामग्रीको अशन, पान सुपारी इलायची लोंग तथा अनार
संतरा ककडी खरबूजा आदि भक्ष्य पदार्थोंको स्वाद्य, जल दुग्ध शरबत आदि पीने योग्य द्रव पदार्थोंको पेय, और पूडी पूआ कचौडी लड्डू आदि चर्वण करने योग्य वस्तुओंको खाद्य कहते हैं ।
भावार्थ -- जिनके द्वारा क्षुधा शांत करनेकी प्रधान अपेक्षा रहा करती हैं उनको अशन, और जिनका मुख्यतथा स्वाद लेना अपेक्षित रहा करता है उनको स्वाद्य, तथा जिनके द्वारा प्राणोंका तर्पण करने की इच्छा हो अथवा किया जाता हो उनको पेय, और जिनके भक्षण करनेमें चर्वण आदिके द्वारा विशेष प्रयत्न करना पडे उनको खाद्य कहते हैं : सुमुक्षु साधुओंको उपवास करनेकी अभिलाषा से अपनी २ शक्तिके अनुसार उन चारो ही प्रकारके पदार्थों का परित्याग करना चाहिये । जसा कि कहा भी है कि " शक्तितस्त्यागतपसी " ।
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उत्तम मध्यम और जघन्यके भेदसे तीनो ही प्रकारका उपवास प्रचुर दुष्कर्मोंका भी शीघ्र ही नाश कर है, अतएव उसका विधिपूर्वक पालन करनेके लिये उपदेश देते हैं ।
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उपवासो वरो मध्यो जघन्यश्च त्रिधापि सः ।
कार्यो विरक्तैर्विधिवद्बह्वागः क्षिप्रपाचनः ॥ १४ ॥
उत्तम मध्यम अथवा जघन्य तीनों में से कौनसा भी उपवास प्रचुर पातकों की भी शीघ्र ही निर्जरा कर
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धर्म ०
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