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बनगार
यो वाचा स्वमपि स्वान्तं वाचं वश्चयतेऽनिशम् ।
चेष्टया च स विश्वास्यो मायावी कस्य धीमतः ॥ १९॥ . . जो मनुष्य निरंतर अपने हृदयको भी पंचनोंसें और वचनोंको भी कायव्यवहारसे धोखा दिया करता है उस मायाचारीका मला ऐसा कौन विचारशील होगा जो कि विश्वास करे क्योंकि मायाचारी मनुष्य जो कुछ मनमें होता है उसको तो कहता नहीं और जैसा कुछ कहता है वैसा करता नहीं।
इस कलिकालमें आर्जवधर्मके धारण करनेवालोंकी दुर्लभता बताते हैं
चित्तमन्वेति वाग् येषां वाचमन्वेति च क्रिया । ... स्वपरानुग्रहपराः सन्तस्ते विरलाः कलौ ॥ २० ॥
आजकल इस पंचमकालमें ऐसे सत्पुरुष बहुत ही विरल हैं-दो चारकी संख्यामें मिलने भी कठिन हैं कि जो अपना और परका उपकार करने में ही तत्पर रहते हुए भी अमायिक हों-जिनका कि हृदयके अनुरूप वचन और वचनके अनुरूप कायव्यवहार हो ।
___ आर्जवधर्मके धारकोंका माहात्म्य प्रकट करते हैं
आर्जवस्फूर्जदूर्जस्काः सन्तः केपि जयन्ति ते । ये निगीर्णत्रिलोकायाः कन्तन्ति निकृतेर्मनः॥२१॥
अध्याय
आर्जवर्मके द्वारा बढता हुआ है तेज अथवा उत्साह जिनका, और इसीलिये जो तीन लोकको अपने पेटमें रखलेनेवाली-जगत्त्रयाँको अपने अधीन करनेवाली मायाके हृदयको विदीर्ण करडालते हैं वे लोकोतर सत्पुरुष