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बनगार
यतिश्रेष्ठोंकी भी जगत में विडम्बना हुआ कर दिया जाता है-लायुक्त मदोन्मत्त सिपाहि
किसी अन्य पदार्थपर जो राज्यका ग्राह्य भाग नियत रहता है-कर लगता है उसको शुल्क और उसके बसूल करनेवाले अधिकारीको शौल्किक कहते हैं । यदि कोई मनुष्य उस शौल्किकको छलकर-कर न देकर किंतु खानमेसे रत्नादिकको लेकर मार्गमें जानेका प्रयत्न करे तो वह शौल्किकके नियुक्त मदोन्मत्त सिपाहियों द्वारा पकडा जाता है
और जबर्दस्ती वहांसे ढकेलकर पछिको कर दिया जाता है-लौटा दिया जाता है। वहांसे लौटते ही जिस प्रकार उस मनुष्यकी जगत्में विडम्बना हुआ करती है उसी प्रकार पूर्व कालमें कितने ही शकट कूर्चवार और रुद्रप्रभृति यतिश्रेष्ठोंकी भी जगत्में वह वह विडम्बना हुई है जो कि लोकमे और शास्त्रमें सर्वत्र प्रसिद्ध है। क्योंकि यद्यपि ये यतियोंमें श्रेष्ठ थे । जो केवल शरीरमात्र परिग्रहका धारण कर सम्यग्ज्ञानरूपी नौकाके द्वारा तृष्णारूप नदीसे पार लगानेवाले योगकेलिये यत्न किया करते हैं उनको यति कहते हैं । इस तरहके यतियोंमें यद्यपि ये शकट कूर्चवारादिक प्रधान और श्रेष्ठ थे, तथा मुख्यतया चारित्रका ही पालन करनेवाले थे, किंतु ज्यों ही उन्होंने दुर्घर्ष जिसका पराभव नहीं किया जा सकता और उद्धत मोहरूपी शौल्किकको छलनेका उपक्रम किया और सम्यग्दर्शन प्रभृति समीचीन गुणरूपी पण्यजात-विक्रेयद्रव्योंको गृहरूपी आकर-खानमेंसे लेकर मोक्षके मार्गमें जानेका प्रारम्भ किया कि त्यों ही उस शौल्किकके मदोन्मत्त लोलाक्षी-रमणीरूपी प्रतिसारकों-भटोंने उनको जबर्दस्ती उस मार्गसे पछिको ढकेल दिया-संसारकी तरफ ही लौटा दिया । इस प्रकार लौटाये जानेपर जगत्में उनकी कौन कौनसी विडम्बना नहीं हुई हर प्रकारसे उनका उपहास ही हुआ।
भावार्थ-शौकिकके वेतनभोगी भटोंके समान जो यहांपर कामिनियोंको मोहकर्मके सहायक बताया है सो ठीक ही है। क्योंकि जिस प्रकार भट शौल्किकके कार्यमें पूरा योग देते हैं उसी प्रकार कामिानियां भी मोहकर्मके कार्यमें-संसारी प्राणियोंको विषयभोगोंमें ही मूर्छित करनेमें पूरा योग देती हैं । इन्हींके निमित्तसे मनुष्य अभीष्ट स्थानपर जानेका प्रयत्न करनेपर भी नहीं जा सकता, प्रत्युत अनिष्ट स्थानकी तरफ ही लौट जाता है।
जिस प्रकार रत्नादिक विक्रेय द्रव्य खानमें उत्पन्न हुआ करते हैं उसी प्रकार सम्यग्दर्शनादिक गुण भी
अध्याय
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