________________
बनगार
४९१
योंका पालन करना चाहिये ऐसा उपदेश देते हैं: --
गुप्तेः शिवपथदेव्या बहिष्कृतो व्यवहृतिप्रतीहार्या ।
भूयस्तद्भक्त्यवसरपर : श्रयेत्तत्सखी: शमी समितीः॥ १६२ ॥ जिस प्रकार अभीष्ट नायिकाको अपने ऊपर अनुरक्त-प्रसन्न करनेकी इच्छा रखनेवाला कोई नायक अवमर न मिलनेपर उसको अनुकूल करनेकेलिये अपनी उस प्रेयसीकी सखीका आश्रय लेता है, उसी प्रकार गुप्तियोंका आराधन करनेकी इच्छा रखनेवाले पतिको उनकी अप्राप्तिमें गुप्तियोंकी सखीके समान समितियोंका ही आश्रय लेना श्रेयस्कर है।
यहांपर समितियोंको गुप्तियोंकी सखी जो बताया है उसका अभिप्राय यह है कि समितियां गुप्तियोंके, स्वभावका अनुसरण किया करती हैं किन्तु गुप्तियां समितियों के स्वभावका अनुसरण कभी नहीं करतीं।
गुप्तियों को मोक्षमार्गकी अधिदेवता और शरीरादिककी चेष्टाको उनकी प्रतीहारिणी जो कहा है उसका भी अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार प्रतीहारिणी अपनी स्वामिनीका आराधन न करनेवाले अथवा विराधन करनेवालेको दूर करदिया करती है उसी प्रकार गुप्तियोंका आराधन करनेमें असमर्थ अथवा विराधन करनेवाले यतिको व्यवहारचेश मोक्षमार्गसे दूर करदिया करती है-यथेष्ट संवर निर्जरा नहीं होने देती। क्योंकि कहा भी है कि कर्मों के आगमनके द्वारका निराध करनेवाले यतिके -गुप्ति और शरीरचेष्टाविशिष्ट साधुके समितियां हुआ करती हैं । यथा--
कर्मद्वारोपरमणरतस्य तिम्रस्तु गुप्तयः सन्ति ।
चेष्टाविष्टस्य मुनेनिर्दिष्टाः समितयः पञ्च ॥ .. अत एव मुमुक्षु यतिओंको उचित है कि मोक्षमार्गकी अधिदेवता गुप्तिकी प्रतीहारिणी चेष्टाके द्वारा बहि
५. सान्ता
अध्याय