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बनगार
आदाननिक्षेपण समितिका स्वरूप बताते हैंसुदृष्टसृष्टं स्थिरमाददीत स्थाने त्यजेत्तादृशि पुस्तकादि । कालेन भयः कियतापि पश्येदादाननिक्षेपसमित्यपेक्षः ॥ १६८ ॥
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जो साधु आदाननिक्षेपण समितिकी अपेक्षा रखता है और उसको सुरक्षित रखना चाहता है उसे उचित है कि वह पुस्तकादिक किसी द्रव्यको जब ग्रहण करना चाहे तब उसको अपने साक्षात् चक्षुओंसे अच्छी तरह देखले
और पीछे पिच्छिका आदिसे झाडले । फिर भी स्थिर-अनन्यचित्त होकर ग्रहण करे । इसी प्रकार जब कोई चीज जहां रखनी हो तब उस स्थानको भी उसी प्रकार देखले और झाडकर साफ करले । तथा रखनेके बाद भी फिरसे उसको कुछ समयमें जब कि सम्मर्छन जीत्र उत्पन्न हो सकते हैं, देखलेना चाहिये । जैसा कि कहा भी है कि:--
आदाणे णिक्खेवे पडिले हिय चक्खुणा समासिज्जो। दव्वं च दवठाणं संयमसिद्धीइ सो भिक्खु । सहसाणाभोइददुप्पमजियापच्चुवेक्खणा दोसा। परिहरमाणस्स भवे समिदी आदाणणिक्खेवा ।।
अध्याय
जो साधु किसी भी वस्तुके ग्रहण करने अथवा रखनेमें सहसा अनाभोग दुःप्रमार्जित और अप्रत्यवेक्षण इन दोषोंको छोडकर तथा उस ग्राह्य अथवा निक्षेप्य वस्तुको और उसके स्थानको अच्छी तरह चक्षसे देखकर और पिच्छी आदिसे साफ करके ग्रहण करता अथवा रखता है उसके आदाननिक्षेपण समिति समझनी चाहिये।
उत्सर्गसमितिका स्वरूप बताते हैं: