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अनगार |
हैं। इनमेंसे एक या अनेक कार्यों का यदि भोक्ता संयमी बालक में प्रयोग करे और अनुरक्त हुआ गृहस्थ उस प्रयोग द्वारा उत्पन्न कराये हुए भोजनको द तथा उसको वह संयमी ग्रहण करे तो उसके वह धात्री नामका उत्पादन दोष समझना चाहिये । जैसा कि कोई संयमी गृहस्थके व लकको खिलाने का इस तरहसे स्वयं प्रयोग करे या करावे अथवा उसकेलिये उपदेश दे कि जिससे भोजनक उत्पन्न होने में सहायता पहुंचे और अनुरक्त गृहस्थके द्वारा दिये हुए उस उत्पन्न भोजनको ग्रहण करे तो उस संयमीक खेलनधात्री नामका उत्पादन दोष लगेगा। जैसा कि कहा भी है कि:
समझना
धर्म
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स्नानभूषापयःक्रीडामातृधात्रीप्रभेदतः ।
पञ्चधा धात्रिकाकार्यादुत्पादो धात्रिकामलम् ।। इन कार्योंसे दोषका आना इसलिये बताया है कि इनसे स्वाध्यायका विनाश होता और जिनमार्गमें पण लगता है।
दूतदोष और निमित्तदोषको स्पष्ट करते हैं:दृतोऽशनादेगदानं संदेशनयनादिना । तोषितादातु'ष्टाङ्गनिमित्तेन निमित्तकम् ॥ २१ ॥
सम्बन्धी पुरुप दिकोंके वचन - वृनान्त - संदेशको स्थानान्तरमें पहुंचाना दतकर्म कहाजाता है। ऐस कर्म करके संतुष्ट किये गय दाताके द्वारा दिये हुए भोजनादिका ग्रहण करना दूतदोष है । जैसा कि कहा भी
अध्याय
जलम्थस्नभःस्वान्यग्रामस्वपरदेशतः।
संबन्धिवचसो नीतिदूतदोषो भवेदसौ ॥ अपने ग्राम या अपने देशसे जलस्थल या आकाशमार्गसे दूसरे ग्राम या दूसरे देशमें जाकर और वहां