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अनगार
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अध्याय
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पहुंचकर किसीके समाचारोंको उसके सम्बन्धी के पास पहुंचाकर भोजन ग्रहण करे तो वहां दूत दोष समझा जाय गा । इस कर्म करने मे शापनमें दूषण लगता है अत एव जिनलिङ्गियोंके लिये अष्टाङ्ग निमित्तके द्वारा संतुष्ट किये गये दाताके द्वारा दिये हुये कहते हैं ! अष्टाङ्ग निमित्तके नाम इस प्रकार हैं:
यह दोष माना है ।
भोजनके ग्रहण करनेको निमित्त दोष
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लाञ्छनाङ्गस्वरं छिन्नं भौमं चैव नभोगतम् । लक्षणं स्वपनश्चेति निमित्तं त्वष्टधा भवेत् ॥
मसा तिल लहसन आदिको लाञ्छन या व्यञ्जन कहते हैं। हाथ पैर सिर पेट अङ्गुली आदि शरीर के किसी भी भागको अङ्ग कहते हैं। स्वर शब्दका अर्थ शब्द स्पष्ट है । अस्त्र शस्त्रादिकके घावको अथवा वस्त्रादि में छेद वगैरह के होजानेको छिन्न कहते हैं। पृथ्वीके किसी विभागविशेषको मौम कहते हैं । सूर्य चन्द्रादिके ग्रहण उदय अस्त आदि होनेको अन्तरिक्ष कहते हैं । शरीरमें नन्द्यावर्त कमल चक्र हाथी आदिके आकारके पडजानेको लक्षण कहते हैं । और सोते हुए मनुष्यको हाथी विमान महिष आदि जो दीखा करते हैं उसको स्वप्न कहते हैं । इन व्यंजनादिकों को देखकर भविष्य में होनेवाले शुभाशुभ फलका जो ज्ञान होता है उसको निमित्तज्ञान कहते हैं। इस ज्ञानके द्वारा तथाभूत फलको बताकर दाताको संतुष्ट करके उसके दिये हुए आहारौषधादिका ग्रहण करना निमित्तनामका उत्पादनदोष समझना चाहिये। क्योंकि ऐसा करनेमें रसास्वादन दीनता आदि दोष दीखते हैं !
वनीपक और आजीवदोषोंका लक्षण करते हैं:
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दातुः पुण्यं श्वादिदानादस्त्येवेत्यनुवृत्तिवाक् । वनीपकोक्तिराजीव वृत्तिः शिल्पकुलादिना ॥ २२ ॥
याचना करनेवालेको वनीपक कहते हैं । अत एव भोजन ग्रहण करने के अभिप्रायसे दाताके अनुकूल
धर्म -
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