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कन्द
अनगार
हमित्यन्नाद्विमेजन्मुनिः। । न शक्यते विभक्तुं चेत् त्यज्यतां तर्हि भोजनम् ॥ ४ ॥ कन्द बीज मूल फल कण और कुण्ड ये छह वस्तुएं ऐसी हैं जो कि आहारसे पृथक की जा सकती हैं। अत एव साधुओंको आहारमें यदि ये वस्तुएं मिलगई हों तो उन्हे निकालकर दर ही कर देना चाहिये । यदि कदाचित् उनका पृथक् करना अशक्य हो तो वह आहार ही छोडदेना चाहिये।
बत्तीस अन्तरायोंका निरूपण करते है-- प्रायोन्तरायाः काकाद्याः सिद्धभक्तेरनन्तरम् । द्वात्रिंशद्वयाकृताः प्राच्यैः प्रामाण्या व्यवहारतः ॥ ४२ ॥
काक अमेध्य छर्दि रोधन रुधिर अश्रुपात इत्यादि अन्तरायके ३२ भेद हैं । जिनके निमित्तसे साधुजन भोजनका परित्याग करदेते हैं उनको अन्तराय कहते हैं! ये अंतराय प्रायः करके सिद्धभक्तिका उच्चारण करने के अनन्तर हुआ करते हैं। प्रायः कहनसे कोई कोई अन्तगय सिद्धभक्तिके पहले भी होते हैं यह सूचित होता है। जैसे कि अभाज्यगृहन वेश । इस नामका अन्तराय जिसका कि लक्षण आगे चलकर करेंगे, सिद्धभक्तिके पूर्व ही हो सकता है । इन अन्तरायोंका प्राचीन ऋषियोंने सूत्ररूपमें नहीं किन्तु टीकाग्रन्थों में व्याख्यान दिया है । यद्यपि यहाँपर अन्तरायोंके नाम ३. ही गिनाये हैं किन्तु आनायके अनुसार इनके सिवाय और भी अन्तराय हो सकते हैं।
काकनामक अन्तरायका खरूप बताते हैं। काकवादिविडत्सों भोक्तुमन्यत्र यात्यधः। यतौ स्थिते वा काकाख्यो भोजनत्यागकारणम् ॥ ४३॥
अध्याय