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· द्रव्य संयमियोंको आहारकेलिये दिया जाय उसको मालारोहण कहते हैं। इस क्रियाके करनेसे दाताका अपाय दीखता है अत एव इसको दोष माना है।
अनगार
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से पहले उनके नामका उल्लेख करते हैं । यहाँपर यह बात स्मरणमें रखना चा िये कि ये दोष भोक्ता संयमी
इस प्रकार उद्गम दोषका प्रकरण समाप्त हुआ। अब उत्पादना दोषोंका व्याख्यान करनेकेलिये सब से पहले उनके नामका उल्लेख करते हैं । यहाँपर यह बात स्मरणमें रखनी चाहिये कि ये दोष भोक्ता संयमी के प्रयोगकी अपेक्षासे होते हैं। चाहे तो उसने उस देय वस्तुको तयार होनेमें स्वयं प्रयोग किया हो या कराया हो अथवा उसकेलिये उपदेश दिया हो।
उत्पादनास्तु धात्री दतनिमित्ते वनीपकाजीवौ । क्रोधाद्याः प्रागनुनुतिवैद्यकविद्याश्च मन्त्रचूर्णवशाः ॥ १९ ॥
उत्पादन दोषके सोलह भेद हैं। धात्री दूत निमित्त बनीपकवचन आजीव क्रोध मान माया लोभ र्व स्तुति पश्चात्स्तुति वैद्यक विद्या मन्त्र चूर्ण वश ।
___ पांच प्रकारके धात्री दाषका बताते हैं:--
मार्जनक्रीडनस्तन्यपानस्वापनमण्डनम् । बाले प्रयोक्तुर्यत्प्रीतो दत्त दोष: स धात्रिका ॥२०॥
अध्याय
धात्री शब्दका अर्थ धाय होता है । जो बालकका पोषण करे उसको धाय कहते हैं। उसके मिन्न भिन्न कार्यकी अपेक्षा पांच भेद हैं; मार्जन मंडन खेलन स्वापन और क्षीर । स्नानादिक द्वारा बालकके पोषण करने वालीको मार्जन धाय, जो भूषणादिकके द्वारा करे उसको मण्डन धाय, जो नाना प्रकारसे क्रीडा करावे उसको खेलन धाय, जो माताकी तरह सुलावे उसको स्वापन धाय, और जो दूध पिलाकर पुष्ट करे उसको क्षरिधाय कहते