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अनगार
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पिहितं लाञ्छितं वाज्यगुडाघद्घाट्य दीयते ।
यत्तदुद्भिन्नमाच्छेद्यं देयं राजादिभीषितैः ॥ १० ॥ .. ऐसी कोई भी धी गुड खांड या छुआरा आदि वस्तु जो कि भट्टी या लाख आदिसे ढकी हुई हो अथवा किसी तरहकी नामकी मील मुहर की गई हो वह खोलकर साधुओंको भोजनके लिये दीजाय तो इसका उद्भित्र दोषसे दक्षित कहा है क्योंकि देखा जाता है कि चींटी आदि जीवोंका प्रवेश प्राय हो जाया करता है । इसी प्रकार यदि राजा या मंत्री आदिके भयसे गृहस्थ लोग साधुओंको आहार दें तो उस दी हुई वस्तुको आच्छेद्य दोषसे दूषित समझना चाहिये । जैसा कि कहा भी है कि:
संयतश्रममालोक्य मीपयित्वा प्रदापितम् ।
राजचौरादिमिर्यत्तदाच्छेद्यमिति कीर्तितम् ।। संयतोंके भिक्षाश्रमको देखकर यदि कोई राजा अथवा उसके समान प्रभुता रखनेवाला मंत्री आदि कोई भी व्यक्ति यद्वा चौर आदि गृहस्थोंको यह भय दिखाकर कि इन आये हुए संयतोंका यदि तुम लोग भिक्षा न कराओगे तो हम तुम्हारा सम्पूर्ण द्रव्य लूट लेंगे या ग्रामसे निकाल देंगे भोजन करवावे, ता उस दी हुई वस्तुको आच्छेद्य दोषसे दूषित समझना चाहिये।
मालारोहण दोषको बताते हैं:निश्रेण्यादिभिरारुह्य मालमादाय दीयते। यद द्रव्यं संयतेभ्यस्तन्मालारोहणमिष्यते ॥८॥
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अध्याय
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नसेनी या जीना-दादरा आदिके द्वारा मकानके ऊपरके खन-मालेपर चढकर और वहांसे लाकर जो