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नगार
अध्याय
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इस प्रकार अठारह हजार शीलके भेदोंको बताकर अब गुणोका लक्षण और उनके चौरासी लाख उच्चर मेदोंको बताते हुए उनके पालन करनेका उपदेश देते हैं । -
गुणाः संयमविकल्पाः शुद्धयः कायसंयमाः । सेव्या हिंसाकम्पितातिक्रमाय मह्मवर्जनाः ॥ १७१ ॥
संगमके ही उत्तर मेदोंका नाम गुण है। कायसंयम, शुद्धि, हिंसादिवर्जन, आकम्पितादिवर्जन, अ विक्रमादिवर्जन, और अब्रह्मवर्जन, इन सबके मेदोका परस्परमें गुणा करनेसे चौरासी लाख मेद होते हैं। इन्हीका नाम ८४ लाख उत्तर गुण है ।
पूर्वोक्त संगमके विषयकी अपेक्षासे बताये हुए पृथिवीकाय पृथिवीकायिक आदि दश भेदोंका परस्परमें गुणा करनेपर कामसंयमके सौ भेद होते हैं। हिंसादित्यागके भी विषयकी अपेक्षा इक्कीस मेद हैं। इनका अतिक्रमादित्यागके चार भेदोंसे गुणा करनेपर ८४ भेद होते हैं और इनका भी उक्त सौ भेदोंसे गुणा करनेपर ८४०० माठ हजार चार सौ भेद होते हैं। पुनः इनका अब्रझत्यागके दश भेदोंसे गुणा करनेपर ८४००० चौरासी हजार और इनका भी आकम्पितादित्यागके दश भेदोंसे गुणा करनेपर आठ लाख चालीस हजार भेद, तथा इनका भी आलोचनादिक प्रायश्चित दश भेदोंसे गुणा करनेपर चौरासी लाख मेद होते हैं। गुणोंके इन सभी भेदोंका ओंको पालन और इनके विरुद्ध दोषोंका परित्याग करना चाहिये ।
हिंसादित्यागके इक्कीस भेद जिन विषयोंकी अपेक्षासे बताते हैं उनके नाम इस प्रकार हैं:
हिंसानृतं तथा स्तेयं मैथुनं च परिग्रहः । क्रोधादयो जुगुप्सा च भयमभ्यरती रतिः ॥
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MARTERESTENTERTAIN
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