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बनगार
आकम्पिय अणुमाणिय ज दिदै बादरं च सुहुमं च ।
छण्णं सहाउलिय बहुजणमब्वत्ततस्सेवी ।। आकम्पित, अनुमानित, दृर, बादर, सूक्ष्म, प्रच्छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन, अव्यक्त, और तत्सेवी ।
प्रायश्चित्तसम्बन्धी आलोचनादिक दश भेद इस प्रकार हैं:आलोचन, प्रतिक्रमण. उभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, परिहार, और श्रद्धान । इन दश भेदोंका ही नाम शुद्धि भी है।
इस प्रकार हिंसादिक, अतिक्रमादिक, कायादिक, और अब्रह्मसम्बन्धी स्त्रीसंगमादिक, तथा आकपितादिक दोषों के नाम और उनकी संख्या यहाँपर बताई है । इन दोषोंके नामसे उल्टा गुणोंका नाम समझना चाहिये। और अत एव गुणोंकी संख्या भी उतनी ही समझनी चाहिये जितनी कि दोषोंकी है । इस तरह इन गुणों की संख्याका और दश प्रकारकी प्रायश्चित्तरूप शुद्धिका परस्परमें गुणा करनेपर गुणों के चौरासी लाख उत्तर भेद होते हैं जैसा कि ऊपर भी बताया जाचुका है। आगममें भी कहा है कि:--
बध्याय
इगवीसवदुरसहिदा दम दम दमगा य आणुपुब्बीए ।
हिंसादिकमकाया विगहणालोचणासोही । ' हिंसादित्यागके इक्कीस भेद, चार प्रकारके अतिक्रमादिक, और पृथिवीकायादिके सौ भेद, तथा शालीवराधनाके त्यागके दश मेद, एवं आलोचनके दश भेद आकम्पितादिक, और दशभेदरूप शुद्धि-प्राय
अ.ध. ६४