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अनगार
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उद्गम शब्दमें उत् उपसर्गका अर्थ उन्मार्ग और गमधातुका अर्थ गमन करना होता है। यहांपर करण अर्थमें घ प्रत्यय किया गया है । अतएव जिन क्रियाओंके द्वाग भोज्य द्रव्य उन्मार्गकी तरफ चला जायआगमकी आज्ञारूप मार्गके विरुद्ध रत्नत्रयका घातक सिद्ध हो ऐसी दाताकी क्रियाओंको उद्गमदोष कहते हैं । इसी प्रकार उत्पादना शब्दका अर्थ उत्पन्न कराना होता है । यहांपर उत्पूर्वक ण्यंत पद् धातुसे करण अर्थमें युद् प्रत्यय हुआ है । अतएव जिन मार्गीवरुद्ध क्रियाओंके द्वारा भोजन उत्पन्न कराया जाय ऐसी यति-पात्रकी क्रियाओंको उत्पादना दोष कहते हैं । अब यहांपर दो श्लोकोंमें उद्गमके भेदोंका नाम गिनाते और उनमें दोषपनेका समर्थन करते हैं।
उद्दिष्ट साधिकं पूति मिश्रं प्राभृतकं बलिः। न्यस्तं प्रादुष्कृतं क्रीतं प्रामित्यं परिवर्तितम् ॥५॥
निषिद्धाभिहतोद्भिन्नाच्छेद्यारोहास्तथोद्गमः।
... दोषा हिंसानादरान्यस्पर्शदैन्यादियोगतः॥६॥ - उद्दिष्ट औद्देशिक ' साधिक पूति मिश्र प्राभृतक बलि न्यस्त प्रादुष्कृत (प्रादुष्कर ) क्रीत प्रामित्य परिवर्तित निषिद्ध अभिहत उद्भिन्न अच्छेद्य और आरोह । इस प्रकार उद्गमके सोलह भेद हैं। इनमें हिंसा अना. दर अन्यस्पर्श और दीनता आदिका सम्बन्ध पाया जाता है इसलिये इनको दोष कहते हैं। किंतु इन बातोंका सम्बन्ध इनमें किस तरहसे पाया जाता है यह बात तब तक समझमें नहीं आ सकती जब तक कि इन प्र. त्येकका स्वरूप समझ न लिया जाय । अतएव इनका यथाक्रमसे सामान्य और विशेष रूपसे स्वरूपनिर्देश
अध्याय
तदौदेशिकमन्नं यदेवतादीनलिङ्गिनः । सर्वपाषण्डपार्श्वस्थसाधून वोद्दिश्य साधितम् ॥ ॥ .
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