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बनगार
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बध्याय
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SPARTATUTE
चिच । इन सबका परस्परमें गुणा करनेपर चौरासी लाख भेद होते हैं । इन गुणोंके उच्चारणका विधानक्रम आगम में इस प्रकार से बताया है कि:
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मक्के प्राणातिपातेन तथातिक्रमवर्जिते । पृथिव्याः पृथिवीजन्तोः पुनरारम्भसंयते ॥ निवृत्तवनितास चाकम्प्यपरिवर्जिते । तथालोचनया शुद्धे गुण आद्यस्तथा परे ।।
अर्थात गुणोंके भेदोंमेंने पहिले हिंसादित्यागके इक्कीम भेदों को उसके वाद अतिक्रमादित्यागके चार मेदों को इसके बाद पृथिवीत्यागादि सौ भेदों को उसके बाद स्त्रीमंगमादित्यागके दश भेदोंको, और उसके भी बाद कम्पितादित्यागके दश भेदोंको और अंतमें आलोचनादिक प्रायश्चित्तके दश भेदोंको पंक्तिक्रमसे स्थापन करना चाहिये । इनमें क्रममे अक्षमंचार करनेपर हिंमाके त्यागी अतिक्रमदाषमे रहिन पृथिवीकायिक जीवके भी आरम्भ मे संयम तथा स्त्रीसंमर्गमे निवृत और आकम्पित दोषने भी मुक्त एवं आलोचनाशुद्धिके धारक सा धुके चौरासी लाख उत्तर गुणों में का प्रथम भेद होगा। इसी प्रकार जाहिंमात्यागकी जगह मृषावाद से मुक्त हो तो दूसरा भेद, अचौर्यव्रतम युक्त विशेषणवर संचार करनेपर तीसरा भेद और कुशीलत्याग विशेषणपर संचार करने से चौथा भेद होता है। इसी तरह आगे भी अक्ष चार के क्रममे सम्पूर्ण भेदोंको निकाललेना चाहिये ।
इस प्रकार सम्यक् चारित्रका विस्तारपूर्वक वर्णन करके अब उसकी उद्योतना आराधनाका तीन पद्यों में वर्णन करना चाहते हैं । किंतु उसमें सबसे पहले मुमुक्षुत्रको अतिक्रमादिक उपर्युक्त चार दोषोंके त्याग करने का उपदेश देते हैं :
चित्रप्रभवं फलभितं चेतोगवः संयम, -- व्रीहिव्रातमिमं जिघत्सुग्दम: माद्भः समुत्सार्यताम् ।
PENNEALER SEHEELEMEN
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