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बनगार
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जो साधु कर्कशादि दुर्भाषाओंको छोडकर हित मित और असंदिग्ध वचन बोलता है उसके भाषा नामकी समिति समझनी चाहिये । जो वचन अपना और दूसरेका उपकार करनेवाले हैं उनको हित, और जो विवक्षित अर्थकेलिये उपयोगी हों उनको मित, तथा जिनसे दूसरोंको संशयादिक उत्पन्न न हों उनको असंदिग्ध कहते हैं । दुर्भाषा दश प्रकारकी बनाई है । यथाः
१-त् मूर्ख है, विलकुल बैल है, कुछ नहीं समझता, इस तरहके संताप उत्पन्न करनेवाले वचनोंको कर्कशा भाषा कहते हैं। २-तू अनेक दोषोंकी खानि महादुष्ट है, ऐसे मर्मवेधी वचनोंको परुषा भाषा कहते हैं। ३--तू धर्मशून्य है, जातिहीन-कुजाति है, ऐसे उद्वेग उत्पन्न करनेवाले वचनोंको कटुभाषा कहते हैं। ४ -तुझे मार डालूंगा, तेरा शिर उडादूंगा, ऐसे कठोर शब्दोंको निष्ठुरा भाषा कहते हैं। ५-तू तो हसीका स्थान बिल्कुल निर्लज्ज है, तेरा तप किस कामका, ऐसे दसरेको क्रोध उत्पन्न करनेवाले वचनोंको परकोपिनी भाषा कहते हैं। -पराक्रमशाली और गुणवान् मनुष्योंका भी निर्मूल विनाश करदेनेवाले, अथवा असद्भुत दोषोंको भी प्रकट करनेवाले वचनोंको छेदंकरी भाषा कहते हैं ।७--ऐसे निष्ठुर वचनोंको जो कि हड्डियोंके भीतर भी कृष करडालें, मध्यकृषा भाषा कहते हैं। ८--अपने महत्वको और दूसरोंकी निंदाको प्रख्यात करनेवाले शब्दोंको अतिमानिनी भाषा कहते हैं। ९---शीलसंतोषादिकके खण्डन करनेवाले अथवा परस्परमें मिले हुए या प्रेमबद्ध व्यक्तियोंमें विद्वेष उत्पन्न करनेवाले वचनोंको अनयंकरा भाषा कहते हैं । १०--जिनके निमित्तसे जीवोंके प्राणोंका भी वियोग होजाय ऐसे वचनोंको भृतहिंसाकरी भाषा कहते हैं। .
___ एषणासमितिका लक्षण बताते हैं:- . विनाङ्गारादिशङ्काप्रमुखपरिकरैरुद्गमोत्पाददोषैः, प्रस्मार्य वीरचर्यार्जितममलमधःकर्ममुग् भावशुद्धम् । स्वान्यानुग्राहि देहस्थितिपटु विधिवत्तमन्यैश्च भक्त्या.
अध्याय