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बनगार
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कृत होनेपर वे उस देवताके आराधन करने का पुनः अवसर प्राप्त करने में तत्पर हों और उसके लिये उस देवता की सखीसदृश समितिका आश्रय लें। विशेष भेदोंका नामोल्लेख करते हुए समितिका निरुक्तिसिद्ध सामान्य लक्षण बताते हैं
ईर्याभाषणादाननिक्षेपोत्सर्गलक्षणाः ।
वृत्तयः पञ्च सूत्रोक्तयुक्त्या सामेतयो मताः ॥ १६३ ॥ सूत्र --श्रुत अथवा आगममें बताये हुए क्रमके अनुसार-समीचीनतया की गई प्रवृत्तिको समिति कहते हैं। क्योंकि निरुक्ति के अनुसार समिति शब्दका अर्थ ऐसा ही होता है कि सम्-संचीचीनतया की गई इति-प्रवृत्ति । इस समीचीन प्रवृत्तिके पांच भेद हैं - ईर्या भाषा एषणा आदाननिक्षेपण और उत्सर्ग । ईर्या शब्दका अर्थ गमन, भाषा शब्दका अर्थ वचन, एषणा शब्दका अर्थ भोजन, आदाननिक्षेपण शब्दका अर्थ क्रमसे ग्रहण करना और रखना तथा उत्सर्ग शब्दका अर्थ छोडना-मलमूत्रादिका परित्याग होता है ।
पांचो ही समितियोंका विशेष लक्षण बतानेकी इच्छासे क्रमानुसार पहिले ईर्यासमितिका लक्षण बताते
स्यादीयासमितिः श्रतार्थविदुषो देशान्तरं प्रेप्सतः, श्रेयःसाधनसिद्धये नियमिनः कामं जनैहिते । मार्गे कोक्कटिस्य भास्करकरस्पृष्टे दिवा गच्छतः, -
कारुण्येन शनैः पदानि ददतः पातुं प्रयत्याङ्गिनः॥ १६४ ॥ प्रायश्चित्तादि ग्रन्थरूप श्रुतके अर्थका भले प्रकार ज्ञान रखनेवाला जो व्रती या यति आत्मकल्याणके
अध्याय
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