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कायगुप्तिके अतीचारोंको बताते हैं: .. कायोत्सर्गमलाः शरीरममतावृत्तिः शिवादिन्यथा, भक्तं तत्प्रतिभोन्मुखं स्थितिस्थाकीर्णेघ्रिणैकेन सा । जन्तुस्त्रीप्रतिमापरखबहुले देशे प्रमादेन वा,
सापध्यानमुताङ्गवृत्त्युपरतिः स्युः कायगुप्तमलाः ॥ १६ ॥ ___ आगे चलकर आठवें अध्यायमें आवश्यकोंका वर्णन करते हुए कायोत्सर्गसम्बन्धी जिन बत्तीस दोषोंका वर्णन करेंगे उनको कायगुप्तिका अचार समझना चाहिये । इसी प्रकार यह शरीर मेग है इस प्रकारकी प्रवृत्ति करनेको, अथवा महादेव विष्णु ब्रह्मा बुद्ध आदिकी मूर्ति के सामने इस तरहसे खडे होनेको मानों उनका आराधन करनेकेलिये खडे हुए हैं आराधककी तरहसे शिवादिकी मूर्ति के सामने हाथ छोडकर या किसी अन्य प्रकारसे खडे होनेको, यद्वा जनसमूहसे व्याप्त स्थानमें एक पैरसे खडे होनेको भी कायगुप्तिका अतीचार कहते हैं । किन्तु ये चारो ही अतीचार कायगुप्तिका जो कायोत्सर्गरूप लक्षण बताया है उसकी अपेक्षासे हैं । ये अतीचार समस्त अथवा व्यस्त दोनों ही प्रकारके हो सकते हैं। कायगुप्तिका दूसरा स्वरूप हिंसादिकके त्यागरूप बताया है । उसकी अपेक्षासे ऐसे स्थानमें जिसमें कि अनेक जन्तु-प्राणिगण स्त्रियों की प्रतिमाएं अथवा परकीय धनादिक प्रचुरतासे पाया जाता हो प्रमाद-अयत्नाचारपूर्वक रहनेको कायगुप्तका अतीचार समझना चाहिये । कायगुप्तिका तीसरा लक्षण समस्त चेष्टाओंका परित्याग बताया है। इस लक्षण की अपेक्षासे शरीर अथवा हस्तादिकके द्वारा परीषह अथवा उपसर्गादिकके दूर करनेकी चिन्तारूप अपध्यानके साथ साथ शरीरव्यापारके छोडनेको कायगुप्तिका अतीचार समझना चाहिय ।
जो मुनि गुप्तियोंके पालन करनेमें असमर्थ है और शरीरसे व्यापार करना चाहता है उसको समिति
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अध्याय