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बनगार
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तक साधारण --निगोदपर्यायमें जन्मजनित अत्यंत उत्कृष्ट और ऐसे दुःख सहने पडेंगे जो कि दुःसह है-सहे नहीं जा सकते । अत एव मानों उनको सहनेका अभ्यास करनेके लिये ही वह अपनी प्राणाधिक प्रिया-वल्लभाके मरणका भी अनुवर्तन करता है- उसके मरनेपर आप भी प्राणपरित्याग करदेता है ।
भावार्थ--कितने ही रागी पुरुष स्त्रीके मरते ही उसके वियोगजनित दुःखको सह न सकनेके कारण अपने भी प्राण छोडदेते हैं। ऐसे जीव मरकर उस निगोद पर्यायको प्राप्त करते हैं जहांपर कि दूसरे साधारण दुःखोंकी तो बात ही क्या, जन्म मरण सम्बन्धी दुःसह दुःख चिरकालतक सहने पडते हैं ।
निगोदिया जीयोंका लक्षण पहले बताया जा चुका है कि इस पर्यायमें भी जीवोंकी सब क्रियाएं साधारण-समान ही होती हैं । जब एक शरीरमें एक जीव जन्म ग्रहण करता है तब उसी शरीरमें उसी समय अनन्तानन्त जीव और भी जन्म ग्रहण करते हैं । इसी प्रकार जब उनमें से एक जीव आहार ग्रहण करता है तो बाकीके सब जीव आहार ग्रहण करते हैं और श्वासोच्छ्रास लेता है तो सब श्वासोच्छास लेते तथा एक मरता है तो सब मरजाते हैं। इसी साधारण निगोदपर्यायके दुखोंको सहनेका स्त्रीपरिग्रही कामी पुरुष अपनी प्रेयसीके मरणका अनुकरण करके मानों अभ्यास करता है। इस प्रकार उत्प्रेक्षा अलंकारके द्वारा स्त्रीपरिग्रहका फल दुर्गतियोंके दुरन्त दुःखोंका भोग करना ही बताया है।
संभोग और विप्रलम्भ शृङ्गारके द्वारा स्त्रियां मनुष्योंके पुरुषार्थको नष्ट करदेती हैं। अत एव उनकी इस शक्तिपर उपालम्भ प्रकट करते हैं:--
अध्याय
१-" साहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहणं च ।
साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं भणियं ॥ जत्थेक्क मरदि जीवो तत्थ हु मरणं हवे अणवाणं । चंकमह नत्थ एको चंकमणं तत्थणताणं॥"