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अनगार
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किस प्रकार पुरुषोंको दुःखकी उत्पादक हुआ करती हैं । सीताने रामचंद्र को भी कुछ कम दुःख नहीं दिया था। पहले तो प्रणयमङ्गजनित मानशृंगारके द्वारा और फिर युद्ध में प्रवृत्त लक्ष्मणकी पराजयका निवारण करनेकेलिये जो उसके पास जानेका रामचन्द्रजीसे उसने असद्ग्रह-दुरभिनिवेश किया उससे क्या रामचन्द्रको कुछ कम दु:ख हुआ। तथा रावणद्वारा हरण होजानेपर जो वियोगजनित दुःख हुआ और उसकी प्राप्तिकलिये रावणसे युद्ध करनेमें जो क्लेश उठाना पडा तथा लङ्केश्वरक साथ उपभोगकी संभावनासे जो मानसिक पीडा हुई वह क्या कुछ कम थी । अनाचारकी शंकासे अग्निपरीक्षा करनेपर जब सीताकी दिव्य शुद्धि की प्रसिद्धि होगई तब जो रामचंद्रजीका अपमान हुआ उससे क्या उन्हे कुछ कम दुःख हुआ। अंतमें जब रामचंद्रजी तपस्या कर रहे थे उस समय भी सीताके जीवने आकर उनके ऊपर घोर उपसर्ग किये ही थे । अत एव सीताने भी मान असद्ग्रह विरह संग्राम और अनाचारकी शंका तथा अपमान और उपसर्गादिक करके रामचन्द्रजीको कम संतप्त नहीं किया था । इनकी कथा रामायणमें प्रसिद्ध है। यह उदाहरण मान और प्रवासरूप विप्रलम्भ शृङ्गारके द्वारा स्त्रियां पुरुषोंको किस प्रकार दुःखकी उत्पादक हुआ करती हैं इस बातको प्रकाशित करता है । हाय, पञ्चाल राजाकी पुत्री द्रौपदीने तो जपने प्रिय पति अर्जुनको कौन कौनसी आपत्ति नहीं पटका था । उसे तो स्वयम्बरके समयमें ही हुए युद्धसे लेकर प्रायः सभी विपत्तियोंमें पडना पडा था। जिसकी कि कथा महाभारतमें प्रसिद्ध है। इस दृष्टांतसे पूर्वानुराग और प्रवासरूप विप्रलम्भद्वारा स्त्रियोंकी दुःखोत्पादकता स्पष्ट होती है।
भावार्थ--लौकिक अनुभव और शास्त्रीय उदाहरणोंसे यही बात सिद्ध होती है कि स्त्रीरूप चेतन परिग्रह रागी पुरुषोंको दुःखका ही कारण है।
स्त्रियोंकी रक्षा करना दुःशक्य है, उनके शीलभङ्ग हो जानेपर बडा भारी परिताप प्राप्त हुआ करता है। एवं वे सद्गुरुओंकी संगति करनेमें अन्तरायका कारण और परलोकके लिये उद्योग करनेमें प्रतिवन्धक हुआ
अध्याय