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बनगार
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प्रमोद कहते हैं । इसके होनेपर अन्तरङ्गमें जागृत हो उठनेवाली भक्ति विकसित होजानेवाले मुखादिकके द्वारा अ. भिव्यक्त होजाया करती है । इस विषयमें कहा है कि:
अपास्ताशेषदोषाणां वस्तुतत्त्वावलोकिनाम् ।
गुणेषु पक्षपातो यः स प्रमोदः प्रकीर्तितः ।। समस्त दोषोंको दूर कर वस्तुतत्वका अवलोकन करनेवालोंके ज्ञानदर्शनादिक गुणोंमें पक्षपात करनेको प्रमोद कहते हैं।
क्लेश भोगते हुए इन प्राणियों की मैं रथा किस तरह करूं ।-इन संक्लिष्ट जीवोंके दुःखोंका मैं निवारण किस तरहसे करदं, ऐसे सद्भाव रखने या विचार करने को करुणा कहते हैं। जैसा कि कहा भी है कि:
दीनेष्वार्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् ।
. . प्रतीकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते ॥ दीन दुःखी भीत और जीवन की याचना करनेवाले-अभयके प्रार्थी जीवोंके उन दुःखोंका प्रतकिार कर नेमें तत्पर रहनेवाली बुद्धिको कारुण्य कहते हैं।
सत्पुरुषों के द्वारा जिनमें स्थापित किये गये गुण संक्रांत होजाते हैं उनको द्रव्यपात्र कहते हैं। किंतु जो इस लक्षणसे शून्य हैं और जिन्होंने तत्वार्थका श्रवण तथा ग्रहण करके श्रोतापने या पात्रताके गुणका संपादन नहीं किया है ऐसे व्यक्तियों को दीगई कोई भी शिक्षा फलवती नहीं हो सकती। अत एव हे ब्राझि ! वा देवि! आओ, साम्यभावनामें तत्पर मेरी आत्माको प्राप्त करो । अपना कार्य छोडकर मौनावस्थाको धारण करो । इस प्रकार साधुओंको अपात्रोंके विषयमें रागद्वेष छोडकर उपेक्षा-माध्यस्थ्यको स्वीकार कर मौन धारण करना चाहिये। कहा भी है कि:
क्ररकर्मसु निःशकं देवतागुरुनिन्दिषु । । आत्मशंसिषु योवेक्षा तन्माध्यस्थ्यमुदीरितम् ॥
अध्याय
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