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बनगार
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सम्यक्चारित्रके द्वारा तेरा संसारसमुद्रसे उद्धार करदेनेवाला है ।
जो प्राणी पुत्रियोंके मोहसे ग्रस्त रहते हैं उनका भी स्वार्थ नष्ट हो जाता है इस बातको खेदके साथ प्रकट करते हैं
मात्रादीनामदृष्टद्रुघणहतिरिवाभाति यज्जन्मवार्ता सौरथ्यं यत्संप्रदाने क्वचिदपि न भवत्यन्वहं दुर्भगेव । या दुःशीलाइफला वा स्खलति हृदि मृते विप्लुते वा धवेऽन्त.
र्या दन्दग्धीह मुग्धा दुहितरि सुतवद् नन्ति धिक् खार्थमन्धाः ॥११॥ . जिसके जन्मकी वार्ता -यदि कोई आकर कहे कि तुमारे लडकी हुई है तो यह समाचार मातापिताको ऐसा मालुम पडता है मानो अदृष्ट मुद्गरका आघात हो-मानो इसने हमारे ऊपर अदृष्ट मुद्गरका प्रहार ही किया है । तथा जन्मके बाद उसका दान यदि वर योग्य न मिले तो माता पिताके चित्तको चैन नहीं लेने देता । समीचीन शास्त्रोक्त विधिके अनुसार, और प्रकर्षरूपसे जिसको कन्या दी जाय उसको संप्रदान कहते हैं । अत एव संप्रदान नाम वर. यिताका है। इस वरयितामें कुल शील बल विद्या धनादिक जिन जिन गुणोंकी आवश्यकता है वे यदि उचित न मिलें या तरतम रूपसे मिले तो उसका दान करते समय माता पिताके हृदयमें " हम योग्य स्थानमें अपनी कन्याको, नियुक्त कर रहे हैं" ऐसा सेतोष नहीं होता। उन्हें असंतोष या असफलताजनित क्लेश ही प्राप्त होता है जो कि जीवनपर्यन्त बना रहता है । इसके बाद, यदि कदाचित् वह कन्या दुःशीला-व्यभिचारिणी अथवा निःसंतान हो तो वह भी दुर्भगा-अनिष्ट कन्याके ही समान मातादिकके हृदय में दिनरात शल्यकी तरह खटक
अध्याय
१-पूर्वसंचित दुष्कर्म अथवा दीखनेमें न आ सकनेवाला ।