________________
बनमार
४२९
बच्याय
४
| तू मेरे साक्षात् हृदयसे निकला है। अत एव यह स्पष्ट है कि पुत्र इस नामके सिवाय तुझमें और मेरी आत्मामें कुछ भी अन्तर नहीं है। अत एव हे हृदयके टुकडे ! चिरंजीव ! तू सैकडों वर्ष की आयु भोग |
मनुने भी इस विषय में कहा है कि:
पतिर्भार्यां संप्रविश्य गर्भो भूत्त्वा जायते । जायायास्तद्धि जायात्वं यदस्यां जायते पुनः ॥
पति ही भार्यामें प्रवेश कर और फिर गर्भ बनकर उत्पन्न हुआ करता है। जायाका जायापन ही यह है कि उसमें पति प्रवेश कर पुन: उत्पन्न होता है । अत एव पिता और पुत्रकी आत्मामें अन्तर नहीं है ।
भावार्थ- पुत्र के साथ अपनी आत्मा के अभेदकी कल्पना वे मूढ पुरुष ही करते हैं जो कि चेतन परिग्रहों में पुत्रके मोइसे अन्धे हो रहे हैं। उन्हें उसका वास्तविक स्वरूप ही नहीं दीखता । उनकी इस बातकी तरफ दृष्टि ही नहीं जाती और वे नहीं जानते कि वह एक ऐसी परिग्रह है जो कि उत्पन्न होने के समय से लेकर ही माता पिताको पीडित करती, क्लेश देती और हितसे पराङ्मुख कर संतप्त ही किया करती है। I
नित्य
पुत्र के विषय में सांसिद्धिक- नैसर्गिक और औपाधिक इस तरह दो प्रकारकी जो भ्रान्ति लगी हुई है उनको दूर कर मुमुक्षुओं को मोक्षके मार्गमें स्थापित करते हैं - उन्हे वास्तविक पुत्र किसको समझना चाहिये सो बताते हैं:
--
यो वामस्य विधेः प्रतिष्कशतयाऽऽस्कन्दन् पितृञ्जीवतो,प्युन्मथ्नाति स तर्पयिष्यति मृतान्पिण्डप्रदाद्यैः किल ।
AAAAAAAAAA, AAA AR의 원소 계 최고가 되었다.
४२९