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बनगार
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___ भावार्थ-नीतिमार्गको प्राप्त न करके केवल दूसरोंका परिभव करनेके ही परिणामोंसे जो कार्यका आरम्भ किया जाता है उसको दुरभिनिवेश कहते हैं। भरत जब समस्त पृथ्वीका उपभोग कर रहा था तब उ. सको अपने छोटे भाईसे वह जरासा भूमिखण्ड भी छीन लेने का आग्रह करना उचित नहीं था। फिर भीनीतिमार्गका अनुसरण न करके केवल बाहुबलीको जीत लेनेके ही अभिप्रायसे जो उसने युद्धका आरम्भ किया वह उसका दुरभिनिवेश ही था। यह उसकी निन्द्य कर्ममें प्रवृत्ति केवल भूमिके लोभवश ही हुई। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह अपने उस छोटे भाईसे युद्ध में परिभूत हुआ और जगतमें निन्दाका पात्र बना ।
धन मनुष्यमें दीन वचन निर्दयता कृपणता तथा अनवस्थितचित्तता आदि दोषोंका उत्पन्न करनेवाला है अतएव इन दोषोंकी अपेक्षासे धनकी निंदा करते हैं -
श्रीभैरेयजुषां पुरश्चटुपटुहीति ही भाषते, देहीत्युक्तिहतेषु मुञ्चति हहा नास्तीतिबाग्घ्रादिनीम् । तीर्थेपि व्ययमात्मनो वधमभिप्रेतीति कर्तव्यता,चिन्तां चान्वयते यदभ्यमितधीरतेभ्यो धनेभ्यो नमः ॥१३१ ॥
अध्याय
धनके द्वारा आतङ्कको प्राप्त होगई है बुद्धि जिसकी ऐसा मनुष्य हाय मद मोह स्खलन आदिको उत्पन्न करनेवाली लक्ष्मीरूपी मदिराका सेवन करनेवाले धनिकोंको सामने खुशामद भरे शब्दोंके बोलने में अति. चतुर बनकर " कुछ दो" इन दीन शब्दोंके बोलने में भी संकोच नहीं करता है। तथा “दो" इस अतिदीन शब्दका उच्चारण करते ही जो स्वयं आहत हो चुके हैं -प्रायः मरचुके हैं. उनपर हाय हाय यह धनसे आतङ्कितबुद्धि मनुष्य “ यहां कुछ नहीं है " ऐसा वचनरूपी वज्र ऊपरसे और भी पटक देता है। इसी प्रकार यह धनमें लोलुपता रखनेवाला मनुष्य, ओरोंकी तो बात क्या, तीथोंमें भी हो जानेवाले या · किये गये व्यय