________________
बनगार
धर्म
१७.
हो या सूक्ष्म, सम्पूर्ण भेदरूप ही हिंसादिकका इनमें परित्याग किया जाता है । क्योंकि ये सकलविरतिरूप हैं। इस प्रकार पूज्यता फल और स्वरूप तीनोंमें ही महत्ता रहनेके कारण इन व्रतोंको महान् कहते हैं ।
_और भी कहा है कि - महत्त्वहेतोगुणिभिः श्रितानि महान्ति मत्त्वा निदर्शनतानि ।
महासुखज्ञाननिबन्धनानि महाव्रतानीति सतां मतानि ।। आत्मिक महत्ता प्राप्त करनेके उदेशसे गुणी पुरुष इनका आश्रय लेते हैं, देवेन्द्रादिक भी महान् समझ कर इनको नमस्कार करते हैं, तथा महानू -अनन्त सुख ज्ञानादिको ये ही उत्पन्न करनेवाले हैं। यही कारण है कि सत्पुरुष इनको महाव्रत कहते हैं । .. ऐसे इन महावतोंकी रक्षाकेलिये मुमुक्षु भिक्षुओंको छठा अणुव्रत " रात्रिभोजनत्याग " प्रधानतया पालना चाहिये । क्योंकि इसके विना उनके किसी भी व्रतकी रक्षा नहीं हो सकती । जैसा कि कहा भी है कि:
तेसिं चेव वयाणं रक्खत्थं रायभोयणणियत्ती।
अठ्ठ य पवयणमादाउ भावणाओ य सव्वाओ॥ - इन व्रतोंकी रक्षाकेलिये रात्रिभोजननिवृत्ति, तथा आठ प्रवचन माताओं (पांच समिति तीन गुप्ति) और समस्त भावनाओंका पालन करना चाहिये । रात्रिभोजनत्यागको अणुव्रत कहनेका प्रयोजन यह है कि मुनियोंके भोजनका त्याग कालकी अपेक्षा सर्वथा नहीं, एक देशरूप ही पल सकता है । रात्रीकी अपेक्षासे ही उसका सर्वथा त्याग हो सकता है और गत्रिमें ही उसकी निवृत्ति बताई है, न कि दिन में । दिनमें तो साधुजन भोजनकेलिये योग्य समयमें प्रवृत्ति कर सकते हैं। रात्रिमें ही भोजनका त्याग सो रात्रिभोजनत्याग ऐसा ही इस शब्दका अर्थ है । अत एव उसको अणुव्रत कहना चाहिये। इस अणुव्रतका भी मुनियोंको अवश्य ही पालन करना चाहि
अध्याय
४७.