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अBEHOSPERIES
बनगार
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आदि और भी अनेक सम्बन्ध हैं। चेतन परिग्रहके हृदयतक पहुंचनेका द्वार-उसमें ममत्त्वोत्पत्तिका कारण यह सम्बन्ध ही है। जब तक यह द्वार खुला हुआ है तबतक जैसा चतन परिग्रह स्वयं हृदयतक पहुंचकर उसको पीडित. कर सकता है या किया करता है वैसा अचेतन परिग्रह नहीं कर सकता । यही कारण है कि यहांपरचेतनके बाद अचेतन परिग्रहका निर्देश किया है। क्योंकि प्रायः जिस पदार्थसे जितना अधिक या निकट सम्बन्ध होगा वह पदार्थ उतना ही अधिक आत्माको पीडित करेगा और जितना दूर होगा वह उतना ही कम क्लेश उत्पन्न करेगा । जीवका जैसा चेतन परिग्रहोंके साथ साक्षात् सम्बन्ध होता है वैसा अचेतन परिग्रहके साथ नहीं। अचे तनके साथ परम्परा सम्बन्ध रहता है । अत एव चेतनकी अपेक्षा अचेतन परिग्रह कम बाय दिया करता है।
चेतन परिग्रहके दोषोंका निरूपण करके क्रमानुसार अचेतन परिग्रहके दोषों को दश पद्योंमें बताना चाहते हैं। जिसमें सबसे पहले घरके दोष दिखाते हैं। क्योंकि और चाकीके दोषोंका स्थान यह घर ही है:
पञ्चथूनाद् गृहाच्छून्यं वरं संवेगिनां वनम् । पूर्व हि लब्धलोपार्थमलब्धप्राप्तये परम् ॥ १२५॥
बध्याय
गृहस्थाश्रममें जो अवश्य ही करने पड़ते हैं ऐसे हिंसाके माधनभृत या स्थान अवद्य कर्मोंको शूना कहते हैं। इसके पांच भेद हैं-उखली, चक्की, चूल, जल, बुरी । इन्ही कर्मों के कारण मनुष्य गृहस्थ कहाता और पूर्णतया मोक्षमार्गपर नहीं चल सकता । तथा इनके न रहते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है । यथाः
"कण्डनी पेषणी चुल्ली उदकुम्भः प्रमार्जनी । पञ्च शूना गृहस्थस्य तेन मोक्ष न गच्छति ॥"
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अतएव जो संवेगी-संसारसे भीरु और मोक्षके अभिलाषी हैं उनके लिये इन पांचो अवम कर्मोंसे