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इसी प्रकार आक्षेप अवज्ञा शोक और उत्कण्ठा आदिक भावोंके भी उदाहरण तत्तत महाकवियोंके ग्रन्थों में मिलते हैं। जिससे यह बात स्पष्ट होती है कि पत्नीका संयोग और वियोग दोनो ही दुःखजनक हैं। एवं च जो पत्नी हर तरहसे मनुष्यका अहित ही करती है, आश्चर्य हे कि, कामी पुरुष उसको आर्या किस तरह समझते हैं। क्योंकि गुणोंसे पूर्ण रहनेके कारण जिसका आश्रय लिया जाय उसको आर्या कहते हैं।
शृङ्गारके पूर्वानुरागादिक जो भेद बताये हैं उनके द्वारा स्त्रियां पुरुषोंको किस प्रकार पीडित किया करती हैं यह बात दृष्टान्तद्वारा क्रमसे स्पष्ट करते हैं:
स्वासङ्गेन सुलोचना जयमऽघाम्भोधौ तथाऽवर्तयत, खं श्रीमत्यऽनु वज्रजङ्कमऽनयद्भोगालसं दुर्मृतिम् । मानासद् ग्रहविप्रयोगसमरानाचारशङ्कादिभिः,
सीता राममतापयत्व न पति हा साऽऽपदि द्रौपदि ॥ ११२॥ अकम्पन राजाकी पुत्री सुलोचनाने जयकुमार-मेघेश्वरको अपने रूपपर आसक्त करके पाप-दुःखोत्पादक व्यसनरूपी समुद्रके भवरमें ऐसा पटका जिससे कि उसको अर्ककीर्तिके साथ महान् युद्ध में प्रवृत्त होना पड़ा। यह बात महापुराणमें अच्छी तरह बताई गई है। यह इस बातका उदाहरण है कि स्त्रियां पूर्वानुरागरूपी विप्रलम्म शृङ्गारके द्वारा किस प्रकार पुरुषोंको दुःखकी उत्पादक हुआ करती हैं। वज्रदन्त चक्रवर्तीकी पुत्री श्री. मतीने अपने साथ साथ अपने पति वज्रजङ्घको भी भागों में अलस बनाकर-विषयसेवनकी आसक्तिसे अशक्त कर बहुत बुरी मृत्युको पहुंचाया । जिस प्रासादमें दोनो ही विषयसेवनमें आसक्त होकर पडे थे उसमें केशोंको सुगन्धित करनेवाली धूपका धुआं भरजानेसे दोनोंका ही कण्ठ लखगया और वे बुरी तरह मृत्युको प्राप्त हुए। यह कथा भी महापुराणमें स्पष्टतया लिखी है। यह इस बातका उदाहरण है कि संभोगसुखके द्वारा भी स्त्रियां
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