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बनगार
धम.
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पतिकी इच्छानुसार चलकर उसको अपने ऊपर इस तरहसे अनुरक्त करके कि जिससे उसके स्वार्थका अपकर्षण हो जाय-वह धर्मादिक पुरुषार्थोंसे च्युत हो जाय, बल इन्द्रिय आयु तथा उच्छासरूप प्राणोंसे भी उसको कुश बना देती है-उसको सुख नहीं देती, सुखा देती है। इससे यह बात भी मालुम हो जाती है कि संभोग शृङ्गारके द्वारा भी स्त्रियां पुरुषोंके हितमें बाधक ही होती हैं। क्योंकि देखते हैं कि कामी पुरुषोंसे कामिनियां एकान्तमें उनकी इच्छानुसार व्यवहार कर यथेष्ट चेष्टा कराया करती हैं। यथा
यद्यदेव रुरुचे रुचितेभ्यः सुभ्रुवो रहसि तत्तदकुर्वन् ।
आनुकूलिकतया हि नराणामाक्षिपन्ति हृयानि रमण्यः ।। प्रिय पतियोंको जो जो विषय रुचिकर मालुम पडा सुन्दरियोंने वही वही एकान्तमें पूरा किया । क्योंकि अनुकूल व्यवहार करके रमणियां नियमसे पतियोंके हृदयोंपर आधिकार करलिया करती हैं।
इसी प्रकार जो स्त्रियां धिक्कार अनादर शोक इच्छाविघात विलाप और उत्कण्ठा प्रभृति भावोंसे उग्रअसह्य विप्रलम्भ-प्रणयभङ्ग या ईयादिकसे उत्पन्न होनेवाले मान अथवा प्रवासरूप शृङ्गारको वढाकर अच्छी तरहसे मनुष्यों के हृदयको पीडित किया करती हैं। तथा शत्रुप्रहारादिक प्रचुर आगन्तुक दुःखरूपी मांसभक्षक राक्षसोंका विषय या ग्रास बनादेती हैं । यह कितने आश्चर्य और खेदकी बात है कि कामी पुरुष फिर भी उन भार्याओंको आर्या कहते हैं अथवा उनको हार्या-अनुरञ्जनीया समझते हैं। जैसा कि कहा भी है कि
वघ्याय
वाग्मी सामप्रवणश्चाटुभिराराधयन्नरो नारीम् । तत्कामिनां महीयो यस्माच्छृङ्गारसर्वस्वम् ॥
वचनकुशल और सान्त्वनामें प्रवीण पुरुषको चाटुकार-खुशामदसे भरे हुए शब्दोंके द्वारा स्त्रियोंका आराधन करना चाहिये । क्योंकि कामियोंके लिये शृङ्गारका सर्वस्व यह आराधन ही महनीय या सेव्य विषय है।