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अंडेसु पवठ्ता गम्भट्टा माणुसा य मुच्छगया।
जारिसया तारिसया जीवा एगिदिया णेया ।। जिस तरह अंडोंमें जर्जाव रहा करते हैं या गर्भ में जीव होते हैं अथवा मार्छित मनुष्य हुआ करते हैं उसी प्रकारके एकेंद्रिय जीव भी होते हैं।
इन्ही एकेन्द्रिय जीवोंको पांच स्थावर कहते हैं । ये दो प्रकारके होते हैं-एक सूक्ष्म दूसरे बादरस्थूल । सूक्ष्म स्थावर सर्वत्र लोकमें भरे हुए हैं । बादर स्थावरोंमेसे पृथिवी आदिके भेद क्रमसे इस प्रकार हैं:
मृत्तिका बालुका चैव शर्करा चोपलः शिला । लवणायस्तथा तामं वपुः सीसकमेव च ॥ रूप्यं सुवर्ण वन च हरितालं च हिंगुलम् । मनःशिला तथा तुत्थमञ्जनं च प्रवालकम् ।। झीरोलकाभ्रकं चैव मणिभेदाश्च बादराः । गोमेदो रुजकोऽश्व स्फटिको लोहितप्रभः । वैरिकश्चन्दनश्चैव बर्वरो वक एव च ।। मोचो मसारगल्वश्च सर्व एते प्रदर्शिताः ।
संरक्ष्याः पृथिवीजीवा यतिभिज्ञानपूर्वकम् ।। मट्टी बालू शर्करी उपल शिला लवण लोहा तांबा संग सीसा चांदी सोना बन हडताल हिंगुल मेनशिल तूतिया अंजन प्रवाल झीरोलके अभ्रक गोमेद रुचक अंक स्फटिक लोहितप्रभ वैडूर्य चन्द्रकान्त जलकान्त सूर्यकान्त
अध्याय
१-तिकौनी चौकोर आदि अनेक तरहकी आतिरूक्ष कंकडी । २- गोल पत्थरके टुकडे । ३-सुरमा । ४मंगा । ५-अभ्रककी बालू-मुडभुड । ६-गोरोचनकेसे रंगकी मणि जिसको कर्केतन भी कहते हैं । ७-राजावर्त मणि जिसका रंग अलसीके फूलकासा होता है। (-पुलिक मणि जिसका रंग प्रवालकासा होता है।९ पद्मराग ।