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अनगार
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. स्त्रियां अग्निके समान हैं. अतएव उनके सम्बन्धसे -सगतिसे मनुष्योंका सत्व-प्रशस्त मनोगुण रेत - वीर्यके छलसे घीकी तरह उड जाता ह । मालुम भी नहीं पड़ता कि वह कहां गया ।
भावार्थ मनुष्यों के सच और विवेकको नष्ट करनेकेलिये स्त्रीसंपर्क ऐसा समझना चाहिये जैसे कि घी और पारेकेलिये अग्निका सम्बन्ध ।
अभीष्ट कामिनियोंकी विशिष्ट चेष्टाएं बडे भारी मोहके आवेशको उत्पन्न करदेती हैं, यह बात वक्रो क्तिके द्वारा बताते हैं:
वैदग्धीमयनर्मवक्रिमचमत्कारक्षरत्स्वादिमाः, सधूलास्यरसाः स्मितद्युतिकिरों दूरे गिरः सुभ्रुवाम् । तच्छ्रोणिस्तनभारमन्थरगमोद्दामक्वणन्मेखला,
मञ्जीराकुलितोपि मछु निपतेन्मोहान्धकूपे न कः ॥ ८६ ॥ रसिक चेष्टाएं ही जिनका प्रकृत प्रयोजन है ऐसे नर्म और वक्रिमा-परिहासकोलि और कुटिलताओंके निमित्तसे उत्पन्न होनेवाले चमत्कार-विसयके आवेशसे जिनमें मधुरता-श्रोत्र और हृदयकी आह्लादकताका रस झर रहा है । और जिनके साथ साथ भृकुटियोंके लास्य-नृत्य-स्निग्ध संचालनका भी रस आरहा है। एवं जिनसे स्मित-ईषद् हास और द्युति-कान्ति चारो तरफको फैल रही है । सुन्दरी ललनाओंके वचन तो दूर ही
अध्याय
१-अकर्कश प्रेमोत्पादक ।
अ. ध. ४९