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अनगार
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सूत्र कहते हैं। वे सूत्र इस प्रकार हैं कि--त्रियोंकी दृष्टि दृष्टिविष सर्पकी दृष्टिके समान है। जिस प्रकार कितने ही विशिष्ट सपौकी दृष्टि में ही इतना उग्र विष होता है कि उसके पडते ही मनुष्य मूञ्छित होजाते हैं और उनका बल क्षीण होजाता है। उसी प्रकार स्त्रियोंके कटाक्षका भी पात होते. ही मनुष्य मोहित हो जाते हैं और उनके सत्व--पराक्रम या मनोबलका मर्दन होजाता है । इसी प्रकार खियोंकी कथा-पारस्परिक भाषणको, कृत्याके समान समझना चाहिये। जिस प्रकार मारण विद्या मनु प्योंके प्राणोंका सहसा संहार करडालती है, उसी प्रकार यह कथा भी साधुओंके संयमरूपी प्राणोंका तुरंत अपहरण कर लेती है। और उनका संसर्ग अग्निके समान है। जिस प्रकार अग्निमें यदि रत्नको डाल दिया जाय तो वह भस्म हो जाता है, उसी प्रकार स्त्रियोंके शरीरका स्पर्श होते ही संयमरत्न खाकमें मिल जाता है। ' इस प्रकार ये तीन सूत्र हैं । किंतु इनके ऊपर एक वक्तव्य भी है। उसका भी साधुओंको सदा स्मरण करना
चाहिये । वह इस प्रकार है कि-स्त्रियोंका नाममात्र भी ग्रह के तुल्य है । क्योंकि जिस प्रकार भूतादिकसे आविष्ट हुआ पुरुष विक्षिप्तमन हो जाता है उसी प्रकार स्त्रियोंका नाममात्र सुननेसे भी विक्षिप्त हो जाता है।
स्त्रियोंके संसर्गजन्य दोषोंका उपसंहार करते हैं
किं बहुना चित्रादिस्थापितरूपापि कथमपि नरस्य । हृदि शाकिनीव तन्की तनोति संक्रम्य वैकृतशतानि ॥ ९॥
अध्याय
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१- पहिला सूत्र । २-दूसरा सूत्र । ३-तीसरा सूत्र | ४- सूत्रामें जो अभिप्राय न आसके उसको बतानेकेलिये जो सूत्रसे अतिरिक्त वचन कहा जाता है उसको वक्तव्य
अथवा वार्तिक कहते हैं।