________________
बनगार
धर्म
RITERATE
में कोढ जलोदर भगंदर आदि नाना प्रकारके अत्यंत रौद्र-उग्र-दुर्निवार महारोगोंसे इस तरहसे पीडित होता है कि जिसमें कुछ कालकेलिये भी उनसे उपरात -उपशांति नहीं मिलती। निरंतर इन रोगोंसे आक्रांत रहकर दुःख भोगा करता है । इस प्रकार हिंसाकी इच्छा करनवाला ही दुःखी-पीडित नहीं होता किंतु जिसने उस हिंसाके करनेका प्रारम्भ तो करदिया पर उसके कारणोंमें किसी तरह विन्न आपडनेके कारण उसको कर न सका तो वह भी प्रायः इसी जन्ममें उन रोगजनित दुःखोंसे पीडित हुआ करता है। प्रायः इसलिये कि कदाचित् किसी दैववश वह इस जन्म में पीडित न भी हो तो भी जन्मान्तरों में वह अवश्य ही पीडित होता है । किंतु जो कुबुद्धि इस तरहकी हिंसा करता है या जिसने की है उसको जो क्लेश भोगने पड़ते हैं उनका तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। अत एव ऐसा कौन शुभमति-मोक्षार्थी भव्य होगा जो कि इस हिंसाका स्पर्श भी करे-कभी भी किसी भी प्रकारसे हिंसामें प्रवृत्त हो ।
भावार्थ-उपर्युक्त समस्त कथनका सारांश यही है कि जो मोक्षार्थी हैं उनको इस हिंसासे यावज्जी3] व सर्वथा विरत होना चाहिये ।
हिंसाका दुर्गतियोंका दुःखका एक फल है। इसी बात को उदाहरणके द्वारा स्पष्ट करते हैं:--
मध्ये मस्कर जालि दण्डकवने संसाध्य विद्यां चिरात, कृष्टं शम्बुकुमारकेण सहसा तं सूर्यहासं दिवः ।
बध्याय
१ चिकित्साशास्त्रम आठ महारोग गिनाये हैं । यथाः
FEAREERINARINE
वातव्याध्यश्मरीकुष्टमहोदरभगन्दराः । । अशांसि ग्रहणीत्यष्टो महारोगाः सुदुसराः ॥