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अनगार । सरूपको मामाक जानकावर कापसेच के हिसाबसको सिा जीवन कर्मिनाकाठच देखकर और गुरुओसे उन
बनगार
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धर्म
भावार्थ-धनश्री और मृगसेनके उदाहरणसे हिंसा और अहिंसाका फल देखकर और गुरुओंसे उनके स्वरूपको समझकर आत्मकल्याणकेलिये अहिंसावतका ही आराधन करना चाहिये ।
वाग्गुप्ति मनोगुप्ति ईर्यासमिति आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकित पानभोजन इन पांच भावनाओंकी जिसमें भावना दीगई-संस्कार किया गया है ऐसा अहिंसाव्रत स्थिर होकर परमोत्कृष्ट माहात्म्यको प्राप्त कराता है। ऐसा बताते हैं
निगृह्णतो वाङ्मनसी यथाव,न्मार्ग चरिष्णोविधिवद्यथाहम् ।
आदाननिक्षेपकृतोन्नपाने,
दृष्टे.च भोक्तुः प्रतपयहिंसा ॥ ३४ ॥ जो पुरुष यथार्थ रीतिसे वचन और मनका निरोध करता है, संक्लेशरहित होकर और सत्कार तथा लोकमें ख्याति लाभ पूजा आदिकी अपेक्षा-आकांक्षा न करके जो वाग्गुप्तिका पालन करता है, तथा जो शास्त्रोक्त विधिके अनुसार मार्गमें गमन करता है, शरीरप्रमाण भूमिको शोधता हुआ चलकर ईर्यासमितिका पालन करता है, एवं च जो ज्ञान और संयममें विरोध न आवे इस तरहसे उनके उपकरणोंका आदान तथा निक्षेपण करता है, जो पुस्तकादिक ज्ञानसंयमके साधन हैं उनको असंयमका परिहार करते हुए उठाकर या रखकर आदाननिक्षेपण समितिका पालन करता है, और जो भोजन करते समय अन्न और पानको ये योग्य हैं या नहीं यह अपनी आंखोंसे देखकर ग्रहण करता-आलोकित पान भोजन करता है। ऐसे मुमुक्षुकी अहिंसाका प्रभाव अव्याहत होजाता है। उसकी अहिंसा अमोघशक्ति होकर सर्वोत्कृष्ट माहात्म्यको प्रकट कर देती है।
अध्याय