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अनगार
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अध्याय
सत्य वचन और मृषा भाषणका उदाहरणद्वारा फल विशेष दिखाते हैं:
सत्यवादीह चामुत्र मोदते धनदेववत् ।
मृषावादी सधिक्कारं यात्यधो वसुराजवत् ॥ ४६ ॥
जो सत्य भाषण करनेवाला है वह पुरुष इस लोक में और परलोकमें दोनो ही जगह धर्मदेवकी तरहसे प्रमोदको प्राप्त होता और सुखी होता है। किंतु जो मृषा भाषण करनेवाला है वह वसुंराजाकी तरह जगत् में निन्दित होता और अंत में अधोगति - नरकादिकको जाकर प्राप्त होता है ।
सत्य दश प्रकारका है - जनपद- देश, सम्मति, स्थापना, नाम, रूप, प्रतीति, संभावना, भाव, व्यवहा र, और उपयान । उदाहरणद्वारा इनका स्वरूप प्रकट करते हैं: -
सत्यं नाम्नि नरीश्वरो, जनपदे चोरोन्धसि, स्थापने
देवोक्षादिषु दारयेदपि गिरि शीर्षेण संभावने ।
भावे
प्रासु, चौदनं व्यवहृतौ दीर्घः प्रतीत्येति ना
पल्यं चोपमितौ सित: शशधरो रूपेम्बुजं सम्मतौ ॥ ४७ ॥
ऐश्वर्य न रहनेपर भी व्यवहारमात्र प्रयोजन सिद्ध करनेकेलिये किसी साधारण मनुष्यकी ईश्वर संज्ञा रखदेना इसको नामसत्य कहते हैं। किसी देश या प्रांतविशेषकी अपेक्षा विषयविशेषमें रूढ शब्दको जनपद सत्य कहते हैं। जैसे कि भातको किसी किसी देशमें चोर कहते हैं। यह कहना उस देशकी अपेक्षासे सत्य है । किसी एक पदार्थमे दूसरे पदार्थकासा व्यवहार करनेकेलिये उस दूसरे पदार्थके भावको निक्षिप्त करनेका नाम स्थापना है । और तदनुसार निरूपण करनेको स्थापना सत्य कहते हैं। किसी द्वन्द्रिय कायविशेषको अथवा १ – २ – इन दोनोंकी कथाएं ग्रन्थान्तरोंमें प्रसिद्ध हैं ।
SARAINING
अमे०
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