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अनगार
शुग्दिदृक्षायतोच्छ्रासज्वरदाहाशनारुचीः । संमूर्योन्मादमोहान्ताः कान्तामाप्नोल्सनाप्य ना ॥ ६ ॥
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कामके वशीभूत हुआ मनुष्य अभिलषित अङ्गनाको न पाकर क्रमसे इन दश अवस्थाओंको प्राप्त होता है। १. शोक, २ दिदृक्षा-अपनी प्रियतमाके देखनेकी अभिलाषा, ३ आयतोच्छास-लम्बे २ श्वास लेना, ४ ज्वर-शारीरिक संतापरूपी व्याधि, ५ दाह समस्त शरीरमें जलन पडना, ६ अशनारूचि-भोजनपानकी अभिलाशाका दुर होजाना, ७ मूछी चेष्टाओंका नष्ट होजाना, १० अंत-नाश-मृत्यु । ये ही दश दशा कामी पुरुष की कामिनीके न मिलनेपर हुआ करती हैं । कहा भी हे कि:
शोचति प्रथमे वेगे द्वितीचे तां दिदृक्षते । तृतीये निःश्वसित्युचश्चतुर्थे ढाकते ज्वरः ।। पश्चमे दाते गात्रं षष्ठ भक्तं न रोचते । प्रयाति सप्तमे मूडामुन्मत्तो जायतेष्टमे ॥ न वेत्ति नवमे किंचिन्मियते दशमेऽवशः । संकल्पस्य षशेमैव वेगास्तीवास्तवान्यथा ॥
अध्याय
कामी पुरुष कामके पहले वेगमें शोक करता, दूपरे वेगमें अमीष्ट कामिनीको देखना चाहता और तीसरे वेगमें दीर्घ निःश्वास लेने लगता है। चौथे वेगमें उसको घर कामज्वर आजाता, पांचवें वेगमें शरीर जलने लगता और छठे वेगमें उसकी भोजनके ऊपरसे रुचि हट जाती है। तथा सातवें वेगमें मूर्छित होता, बाठमें उन्मत्त होता और नौवेंमें ज्ञानशून्य होकर दश धेगमें मृत्युको प्राप्त हो जाता है। कामी पुरुषके ये तीन मंद या
। केवल संकल्पके ही निमित्त दशव थेगमें मृत्युको प्राप्त होतात वेगमें मार्छित होता, बाने