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अनगार
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अध्याय
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Masa
MUSTYLION
चन्द्रः पतङ्गति भुजङ्गति हारवल्ली, -- स्रक् चन्दनं विषति मुर्मुरतीन्दुरेणुः । तस्याः कुमार भवतो विरहातुरायाः, किं नाम ते कठिनचित्त निवेदयामि ||
हे कठोरहृदय कुमार ! तेरे विरहसे आतुर हुई - घबडाई हुई उस कामिनीका हाल मैं तुझको कहांतक बताऊं । आज कल उसको चन्द्रमा चण्डरश्मि सूर्य की तरह संताप देनेवाला बन रहा है । हारलता भुजङ्गनी की तरह पाडित कर रही है । पुष्पमाला और चन्दन जहरका काम कर रहे हैं । एवं इन्दुरेणु चन्द्रमाकी धूलि - चांदनी भूसी की आग की तरह झुलसा रही है ।
कामदेवका उद्रेक समस्त गुणोंके समूहका शीघ्र ही उपमर्दन कर डालता है; ऐसा बताते हैं: -
कुलशीलतपोविद्याविनयादिगुणोच्चयम् ।
दन्दह्यते स्मरो दीप्तः क्षणातृष्णामिवानलः ॥ ७० ॥
कुल- पितादिक के संतानक्रमसे चला आया हुआ आचरण, शील- सदाचार और पवित्रता, तप- इन्द्रिय और अन्तःकरण के नियमन - विषयप्रवृत्ति से निशेध करनेका अनुष्ठान, विद्या- ज्ञान, विनय-तप अथवा ज्ञानादिककी अपेक्षा जो बडे हैं उनके सामने नम्रता रखना, तथा और भी जो प्रतिभा मेधा स्मृति वादित्व वाग्मिता तेजस्विता आरोग्य बलवीर्य लजा दाक्षिण्य प्रभृति अनेक लौकिक या पारलौकिक गुण हैं उन सबके समूहको यह प्रदीप्त हुई कामानि क्षणमात्रमें इस तरहसे भस्म करदेती है जैसे कि साधारण अनि घासके ढेर को भी झटसे जलाकर भस्म करदेती है ।
भावार्थ:- मनुष्यका इस लोक और परलोक दोनो ही जगह उपकार - कल्याण जिनसे हो ऐसे स्वभा
SEN BEMET MY MESSE KEEM
धर्म०
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