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बनबार
तैजस है। तर्कके लिये इस सिद्धांतको मानकर यदि इसपर विचार करें तो मालुम पडता है कि इन मृगनयनी का मिनियोंके नेत्रोंमें यह अग्नि नहीं पाई जाती । भासुररूप और उण्ण स्पर्श गुण से युक्त बाद्य स्थूल स्थिर और मूर्त द्रव्य जिसका कि दाहकता ही लक्षण है, अग्नि नामपे संसारमें प्रसिद्ध है । यह अग्नि तो इन अङ्गनाओंके नेत्रोंमें नहीं पाई जाती, किंतु इससे विलक्षण ही कोई अग्नि इनमें अवश्य पाई जाती या रहती है। क्योंकि अन्य. था- यदि विलक्षण आग्न नहीं है तो देखिये कि, उन अङ्गनाओंके जिन कटाक्षोंको लोग अमृतकी तरहसे स्वादु समझ कर पहले अपने नेत्रोंके द्वारा पीजाते हैं - उनका रसास्वादन करलेते हैं; वे ही कटाक्ष उन मनुष्यों के उस मनको जो कि ध्रुव--नित्यरूपकी अपेक्षा सदा अविकृत रहनेवाला और विश्वमात्रमें अलातचक्रकी तरहसे चारो तरफको घूमनेवाला और इसपर भी जो अत्यंत अणु-जो योगियोंके भी सहसा लक्ष्यमें न आसके ऐसा परमाणुसे भी अधिक सूक्ष्म है उसको भी भस्मसात् करनेकेलिये वज्राग्निकी तरहसे आत्माके भीतर प्रज्वलित क्यों हुआ करते हैं ?
भावार्थ-यदि साधारण अग्नि ही उसमें पाई जाती या होती जैसी कि वैशेषिकोंने बताई है, तो उसका कार्य प्रकाश या दाह आदि भी होता; सी नहीं होता बल्कि अमृतकी तरह लोग उसका रसास्वादन करने लगते हैं। इससे मालुम पडता है कि चक्षुओंमें जिस तैजसताकी कल्पना वैशेषिकोंने की है वह उसमें नहीं पाई जाती । किंतु यह कहा जा सकता है कि इन मृगनयनियोंके नयनोंमें कोई विलक्षण अग्नि रहती है जो कि ऊपरसे तो अमृतके समान मधुर मालुम पडती है और भीतर जाकर वज्राग्निके समान काम करती है । विवे कको नष्ट कर अन्तरात्माके हितको भस्म करदेती है । इसी लिये तो कहते हैं कि कामिनियोंके कटाक्षका निरीक्षण देखने मात्रमें रमणीय किंतु परिणाममें अत्यंत दारुण है।
कटाक्षनिरीक्षणके द्वारा क्षणमात्रमें ही मनुष्यके हृदयमें जो अपने स्वरूपको अभिव्यक्त करदेने की कामिनियों में शक्ति है उसको विदग्धोक्तिके द्वारा प्रकट करते हैं: -
हृद्यभिव्यञ्जती सद्यः खं पुंसोऽपाङ्गवलिगतः ।
अध्याय