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बनगार
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आदावभिलाषः स्याचिन्ता तदनन्तरं ततः स्मरणम् । तदनु च गुणसंकीर्तनमुदगोथ प्रलापश्च ।। उन्मादस्तदनु ततो व्याधिर्जडता ततस्ततो मरणम् । .
इत्थमसंयुक्तानां रक्तानां दश दशा क्षेयाः॥ विरही कामुक पुरुषोंकी क्रमसे ये दश दशाएं हुपा करती हैं । सबसे पहले अभिलाषा, उसके बाद चिन्ता, और उसके अनन्तर स्मरण, उसके पीछे गुणसंकर्तिन, आर उसके भी पीछे उद्वेग, और फिर प्रलाप, तथा प्रलापके बाद उन्माद व्याधि जडता और मरण ।
कामसे पीडित हुए मनुष्यके लिये संमारमें ऐसा कोई कृत्य नहीं है कि जिएको वह न करडाले-बुरेसे बुरे काममें भी उसकी प्रवृत्ति होजाती है। यही बात बताते हैं:
अविद्याशाचकासमरमनस्कारमरुता , ज्वलत्युञ्चभोक्तुं स्मरशिखिनि कृत्स्नामिव शितम् । रिरंसुः स्त्रीपङ्के कृमिकुलकलङ्के विधुरितो ,
नरस्तन्नास्त्यास्मिन्नहह सहसा यन्न कुरुते ॥ ६७ ॥ जिस समय अविद्या-अज्ञान निमित्तसे उत्पन्न हुई आशाओं-भविष्य विषयोंके भोगकी आकांक्षाओंके बडे भारी प्रसाररूपी मनस्कार-संकल्प विकल्पकी वायुसे प्रेरित होकर कामदेवरूपी अग्नि माना समस्त चेतनाका भक्षण करजानेकेलिये ही जोरसे जलने लगती है। उस समय व्याकुल यह प्राणी सहसा . क्ष्म कृमियोंके कुलके स्थान स्त्रीरूपी कर्दममें संसारका रमण करने की इच्छा करना-प्रवेश करना चाहता है। हा, ऐसे समयमें संसारका ऐसा कौनसा अकृत्य है कि जिसको यह नहीं कर डालता।
अध्याय