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पनगार
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अर्थेपहृते पुरुषः प्रोन्मत्तो विगतचेतनो भवति ।
मियते कृतहाकारो रिक्तं खलु जीवितं जन्तोः ।। धनका हरण हो जानेपर मनुष्य अत्यंत उन्मत्त और चेतनाशून्य होजाता है तथा हाय हाय करता हुआ मर जाता है।
और भी कहा है किःजीवति सुख धने सति बहुपुत्रकलत्रमित्रसंयुक्तः ।
धनमपहरता तेषां जीवितमप्यपहृतं भवति । धनके रहते हुए ही मनुष्य अपने बहुतसे पुत्र कलत्र मित्र प्रभृति बंधु बान्धवोंके साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है । अत एव जो मनुष्य उसके धनका अपहरण करता है वह क्या उसके जीवनका ही अपकरण नहीं करता? अवश्य करता है। इससे सिद्ध है कि चोरी करनेवाला मनुष्य परघात जसे अकृत्यको भी करता ही है।
अध्याय
धनका अपहार करना मानो उन प्राणियोंके प्राणोंका अपहरण करना है, यह बात दिखाते हैं
त्रैलोक्येनाप्यविक्रेयानऽनुप्राणयतोङ्गिनाम् ।
प्राणान् रायोऽणकः प्रायो हरन् हरति निघृणः ॥ ४९ ॥ जिन प्राणोंको प्राणी त्रिलोकीके मूल्यसे भी बेचना नहीं चाहते उन प्राणोंका अनुवर्तन करनेवाले ध नका जो निकृष्ट पापी निघृण-करुणारहित होकर हरण करता है वह प्रायः उन मनुष्योंके प्राणोंका ही हरण करता है । क्योंकि यदि किसीसे यह कहा जाय कि " हम तुमको तीन लोककी संपत्ति देंगे उसके बदलेमें तुभ