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बनगार
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द्वारं यद्विषशस्त्रपावकतिरस्कारो राहंकृति । यन्म्लेच्छेष्वपि गर्हितं तदनृतं जल्पन्न चेद्रौरव
प्रायाः पश्यति दुर्गती: किमिति ही जिह्वाच्छिदाद्यान् कुधीः ॥ ४० ॥ सत्प्रतिषेध असदुद्भावन और विपरीत इन तीन प्रकारके असत्योंसे सभी लौकिक और शास्त्रीय व्यवहारों-प्रवृत्ति निवृत्तिकी पद्धतियोंका विप्लव होजाता है। जगत्का समस्त व्यवहार अथवा वर्णाश्रम धर्मका आचार व्यवहार इन असत्योंसे नष्ट अथवा विपरीत होजाता है। सावध नामका जो असत्य है वह हिंसा चोरी और कुशील आदिसे उत्पन्न होनेवाले पापोंका द्वार है। क्योंकि " जमीनको खोद डाल, ठंडे पानीसे ही स्नान करले, पूआ तो पकाले, थोडे फूल तोडले, यह चोर है" इत्यादि अनेक प्रकारके वचनों के मार्गसे ही उन पापोंका आस्रव होता है | अप्रिय नामका जो असत्य है उसका अहंकार तो इतना उत्कट है कि जो विष शस्त्र और अग्निका भी तिरस्कार करता है। क्योंकि विषसे मनुष्य उतने मोहित नहीं हो सकते जितने कि अप्रिय वचनोंसे होते हैं । उसी प्रकार शस्त्रसे आहत होकर मनुष्योंको उतना असह्य दुःख नहीं हो सकता जितना कि आप्रिय वचनोंको सुनकर होता है । एवं च, अग्निसे भी मनुष्य उतने संतप्त नहीं हो सकते जितने कि अप्रिय शब्दोंसे होते हैं। . गर्हित वचनोंको निंद्य कहते हैं। इस विषयमें कहा है किः -.
“पैशुन्यहास्यगर्भ कर्कशमसमञ्जसं प्रलपितं च ।
अन्यदपि यदुत्सूत्रं तत्सर्व गर्हितं गदितम् ॥" चुगली या हास्यपूर्ण वचन अथवा कर्कश अयोग्य, और भी जो उत्सूत्र भाषणादिक हैं वे सभी ग
बध्याय
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१-सचित्त पानीसे।