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देती उसी प्रकार सत्य वचनके विना ये विद्याएं भी इच्छित पदार्थ नहीं दे सकतीं। अत एव विद्यारूपी कामधे. नुका बच्चा, यह सत्य वचन ही है। कहा भी है कि:
बनगार
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सत्यं वदन्ति मुनयो मुनिमिर्वद्या विनिर्मिता सर्वाः।
म्लेच्छानामपि विद्याः सत्यभृतां सिद्धिमायान्ति ।। जितनी विद्याएं हैं वे सब मुनियोंकी बनाई हुई हैं। और मुनिलोग सत्य ही बोलते हैं । अत एव जो | सत्य भाषण करनेवाले हैं उन्हीको वे सिद्ध होती हैं। जो म्लेच्छ होनेपर भी सत्यभाषी हैं तो उनको भी वे विद्याएं सिद्ध हो जाती हैं।
शत्रुओंद्वारा किये गये अपकाररूपी अपायके कारणभूत सर्पका यह सत्य वचन प्रतीकार- इलाज है। और अत्यंत निर्मल तथा जगत्को आल्हादित करनेवाली कीर्तिरूपी गङ्गाका मानो यह हिमवान् पर्वत है। क्योंकि जिस प्रकार गङ्गाकी उत्पत्ति हिमवान्से ही होती है उसी प्रकार कीर्तका जन्म और प्रकार भी इस सत्य वचनसे ही होता है । यह शिष्टपुरुषरूपी कमलवनकेलिये मानो सूर्यके समान है। क्योंकि लोकका उपकार करनेवाले सत्पुरुष जब कि कमलवनके सदृश हैं तो जिस प्रकार सूर्यको देखकर कमलवन खिल जाता है उसी प्रकार सत्य वचनको . पाकर सत्पुरुष भी विकसित हो जाते हैं। प्रीतिके उत्पन्न करनेवाली वाग्देवी-सरस्वतीरूपी ललनाका मानो यह विलासकमल--क्रीडाकमल ही है। जिस प्रकार क्रीडाकमल ललनाओंकी रतिका कारण होता है उसी प्रकार सत्य वचन भी सरस्वतीकी प्रीतिका कारण है । लक्ष्मीरूपी समुद्रकी वेलाकेलिये मानो यह चंद्रमाके समान है। क्योंकि जिस प्रकार चंद्रमाको पाकर समुद्रकी वेला बढ़ने लगती है उसी प्रकार सत्य वचनके निमित्तसे लक्ष्मीकी भी वृद्धि होने लगती है। इस प्रकार समस्त जगतका विपत्तियोंसे उद्धार करदेने में समर्थ इस सत्य वचनका ही मुमुक्षुओंको निरंतर भाषण करना चाहिये ।
भावार्थ-यह सत्य वचन छह विशेष गुणोंसे युक्त है। १ इससे विद्याएं सिद्ध होती, २ शत्रुओका प्रतीकार होता, ३ कीर्ति विस्तृत होती, ४ सत्पुरुष आल्हादित होते, ५ सरस्वती प्रसन्न
बध्याय