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अनगार
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अध्याय
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आयु और पुण्य दोनोंके क्षीण होनेसे प्राणियोंका मरण होता है। किंतु विषम आयु और पुण्यके धारण करने वालोंका उन दोनों के क्षीण हुए विना भी मरण हो जाता है । अर्थात् या तो आयु पुण्यके विपरीत होजाय अथवा पुण्य आयुके विपरीत हो जाय तो भी जीवोंका मरण हो जाता है। क्योंकि जीवनके कारण अनुकूल आयु और पुण्य दोनो हैं । इस कथनसे तथा विष भक्षणादि करनेवाले तथा शस्त्रसे आहत होनेवाले आदि जीचोंका मरण होता हुआ लोकमें भी देखने में आता है। इससे सिद्ध है कि अकालमें भी जीवोंका मरण होता है । अत एव इस प्रकारके सभूत पदार्थके निषेध करनेको सत्प्रतिषेध नामका असत्य समझना चाहिये !
जो पदार्थ नहीं है -असत् है उसके निरूपण करनेको असदुद्भावन नामक असत्यका दूसरा भेद समझना चाहिये। जैसे कि यह निरूपण करना कि “ इस जगत्को - पृथिवी पर्वत वृक्षादिकों को महेश्वरने बनाया है । " अथवा " देवताओंका अकालमें भी मरण होता है। " क्योंकि जगत्का महेश्वरके द्वारा बनाया जाना असत् है । क्योंकि वह प्रमाण से बाधित है- किसी भी प्रमाणसे यह बात सिद्ध नहीं होती कि जगत्का कर्त्ता महेश्वर है । और स्वयं उन्होंने भी कहा है कि " न कदाचिदनीदृशं जगत् । " यह अनुपम जगत् कभी नहीं बना । " अत एव यह बात असत् है । इसी प्रकार अकालमें देवताओंका मरण भी असत् है । ऐसे ही असभूत पदार्थों के निरूपण करनेको असदुद्भावन नामका असत्य कहते हैं । किसी पदार्थको दूसरा पदार्थ वताना इसको विपरीत नामका असत्य कहते हैं। जैसे कि गौको घोडा कहना । शास्त्र अथवा लोकसे विरुद्ध वचनको निंद्य नामका असत्य कहते हैं। इसके तीन भेद हैं- सावद्य अप्रिय और गर्हित | हिंसोत्पादक वच. नको सावध, अरुचिकर भाषणको अप्रिय, और धिक्कारके योग्य अथवा अनादरणीय शब्दोंको निन्द्य कहते हैं । ऊपर चार प्रकारके असत्यको जिन दोषरूपी सपकी वामी बताया था उन्ही दोषोंका निरूपण करते हैं
यद्विश्वव्यवहारविप्लवकरं यत्प्राणघाताद्यघ, -
धर्म ०
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