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बनगार
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धर्म
३.१
क्ष्माद्याः साधारणाःक्ष्मादिकाया जीवोज्झिताः श्रिताः।
जीवैस्तत्कायिकाः ज्ञयास्तज्जीवा विग्रहेतिगैः ।। सामान्य पृथिवीको पृथिवी, जिसको जीवने शरीर बनाकर छोडदिया है उसको पृथिवी काय, जिसको जीव शरीर बनाकर रह रहा है उसको पृथिवी कायिक, विग्रहगतिमें रहने वाले उन जीवोंको जिनके कि पृथिवी नाम, कर्मका उदय है। पृथिवी जीव कहते हैं। जिस प्रकार यहां पृथिवीके भेद बताये उसी प्रकार जलादिकके भी समझना । इनमें अन्त्यके जो दो जीव हैं उनकी संयमियोंको रक्षा करनी चाहिये । इन जीवोंके शरीरका आकार इस प्रकार बताया है:
समानास्ते मसूराम्भोबिन्दुसूचीव्रजध्वजः।।
धराम्भोग्निमरुत्कायाः क्रमाञ्चिन्त्यास्तरुत्रसाः॥ पृथिवीकायका मसूरके समान, जलकायका जलबिन्दुके समान, आग्नकायका सुइयोंके समूहके समान और वायुकायका आकार ध्वजाके समान है। किंतु वनस्पति और त्रस जीवोंका आकार एक प्रकारका नहीं; विविध प्रकारका है।
* ऊपर जो प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित भेद गिनाये हैं वे केवल वनस्पतिके ही नहीं; समस्त संसारियों के हैं। यथाः
प्रत्यककायिका देवाः श्वाभ्राः केवलिनोद्वयम् ।। आहारकधगतोयषावकानिलकायिकाः ।। निगोतबादरे: सूक्ष्मैरेते सन्त्यप्रतिष्ठिताः ॥
.. पञ्चाक्षा विकला वृक्षजीवाः शेषाः प्रतिष्टिताः ।। देव नारकी दोनो प्रकारके केवली पृथिवी जल अग्नि और वायुकायिक जीवोंके शरीर तथा आहारक श
बध्याय