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बनगार
धर्म
पंचवि इंदियपाणा मणवचिकायेसु तिग्णि बलपाणा ।
आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण हुंति दह पाणा ।। पांच इन्द्रिय -स्पर्शन रसन घाण चक्षु श्रोत्र, तीन बल मन वचन काय, एक श्वासाच्छास और एक आयु, ये दश प्राण हैं । ये दो प्रकारके हुआ करते हैं-एक द्रव्यप्राण दूसरे भावप्राण । चित्सामान्य के सम्बन्धसे उसके अनुसार प्रवृत्ति करनेवाले पुद्गलपरिणामको द्रव्यप्राण, ओर पुद्गलसामान्यके सम्बन्धसे अनुप्रवृत्ति करनेवाले चित्परिणामको भावप्राण कहते हैं। संसारी जीव यथायोग्य इन दोनो ही प्राणों के धारक होते हैं। इन्ही संसारी जीवों के दो भेद हैं-एक त्रस दूसरे स्थावर । उक्त पांच इन्द्रियोंमेंमे आदिकी दो आदि इन्द्रियोंके धारकको त्रस ओर, एक पहली ही इन्द्रियके धारकको स्थावर कहते हैं। जो कि इन्द्रियां अपने अपने स्पर्शादिक विषयको पृथक् पृथक् विषय किया करती हैं-जानती हैं । अत एव त्रस चार प्रकारके हैं-द्वीन्द्रय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय ओर पंचेन्द्रिय । इनके भी उत्तर भेद अनेक हैं। यथाः
जलूकाशुक्तिशम्बूकगण्डूपदकपर्दिकाः। जठरकृमिशङ्खाद्या द्वींद्रिया देहिनो मताः ॥ कुन्थुः पिपीलिका कुम्भी यूकामत्कुणवृश्चिकाः । कर्के टकेन्द्रगोपाद्यास्त्रींद्रियाः संति देहिनः । पतङ्गा मशका दंशा मक्षिकाकीटगर्मुतः । पुत्रिकाचश्चरीकाद्याश्चतुरक्षाः शरीरिणः ।। नारका मानवा देवास्तियञ्चश्व चतुर्विधाः ।
सामान्येन विशेषेण पञ्चाक्षा बहुधा स्थिताः ॥ जोंक शीप शम्बूक गिडोले कौडी, पेट में पडजानेवाले कीडे और शंख प्रभृति जीव द्वीन्द्रिय हैं । कुन्थु चेंटी कुम्भी जूं खटमल विच्छू कर्कोटक इन्द्रगोप-वर्षातमें होनेवाले मखमली कीडे आदि त्रीन्द्रिय जीव हैं। पतंग मच्छड
अध्याय
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