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बनगार
छिन्नोद्भवं च सामान्यं प्रत्येकमितरद्वपुः ।। वल्लीवृक्षतृणाद्यं स्य देकाक्षं च वनस्पतिः ।
परिहायो भवन्त्येते यतिना हरिताङ्गिनः ।। वनस्पति दो प्रकारकी होती है। एक साधारण, दूसरी प्रत्येक । जिसका शरीर साधारण है-जहांपर एक ही शरीरमें सामान्य रूपसे अनन्त निगोद जीव रहते हैं उसको साधारण या अनन्तकाय कहते हैं । यथा स्नुही दुधी, गुडूची इत्यादि । जिस शरीरमें मुख्यतया एक ही जीव रहता है-जिन वनस्पति जीवोंका शरीर भिन्न भिन्न होता है उसको प्रत्येक शरीर कहते हैं; जसे सुपारी नारियल । इसके दो भेद हैं, एक सप्रतिष्ठित दूसरा अप्रतिष्ठित । जिसके आश्रयसे दूसरे निगोद जीव भी रहें उसको सप्रतिष्ठित और जिसके आश्रयसे निगोद जीव न रहें उसको अप्रतिष्ठित कहते हैं । यथाः
एकमेकस्य यस्याङ्गं प्रत्यकाङ्गः स कथ्यते ।
साधारणः स यस्यांगमपरैबहुभिः समम् ।। जिस एक जीवका एक ही शरीर होता है उसको प्रत्येकशरीर कहते हैं, और जिस शरीरमें दूसरे भी वहुतसे जीव साथमें रहें उसको साधारण कहते हैं। साधारण-अनन्तकाय वनस्पतियोंकी त्याज्यताके विषय में कहा है कि:
एकमपि प्रजिघांसुर्निहन्यनन्तान्यतस्ततोऽवश्यम् ।
करणीयमशेषाणां परिहरणमनन्तकायानाम् ॥ साधारणोंमें एकके मरने मारनेपर अनन्त जीवोंकी मृत्यु होती है अत एव उन सबका त्याग अवश्य करदेना चाहिये।
अध्याय
अ.प. ३८