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अनगार
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। यह हतविधि-विधाता जिसकी जगत्में कोई उपमा नहीं है; ऐसे सौन्दर्यको उत्पन्न करके उसके मदसे तेरे सम्यक्त्वको दृषित न करदेता। - लक्ष्मीके मदका त्याग करनेकेलिये वक्रोक्तिसे वर्णन करते हैं:
या देवैकनिबन्धना सहभुवां यापहियामामिषं, या विस्रम्भमजस्त्रमस्यति यथासन्नं सुभक्तेष्वपि । या दोषेष्वपि तन्वती गुणाधियं युङ्क्तेनुरक्त्या जनान्, स्वभ्यस्वान्न तया श्रियाशु हियसे यान्त्यान्यमान्ध्यान्न चेत् ॥९॥
जिस लक्ष्मीकी प्राप्तिका कारण एक दैव ही है-पौरुषकी अपेक्षासे रहित पूर्वसंचित शुभ कर्मके निमित्तसे ही जो प्राप्त हुआ करती है, जिससे अनेक प्रकारकी आपत्तियां और उससे उत्पन्न होनेवाले नाना प्रकारके भयएक साथ उत्पन्न होने लगते हैं। जैसा कि कहा भी है
बह्वपायमिदं राज्यं त्याज्यमेव मनस्विनाम् । यत्र पुत्राः ससोदा वैरायन्ते निरन्तरम् ।।
अध्याय
जहांपर पुत्र और सहोदर भाईतक हमेशह वैर किया करते हैं। जिसमें अनेक अपाय -बुरे काम करने पडते हैं, अथवा अत्यंत दुष्कर्म-पापका संचय होता है। ऐसा यह राज्य मनस्वियोंकेलिये त्याज्य ही है। जो लक्ष्मी अत्यंत भक्ति करनेवाले-मित्र पुत्र कलत्र भ्राता आदिमेंसे भी यथासन्न जो जो निकटवर्ती हैं उन सबमेंसे भी नित्य ही विश्वासको नष्ट करदेती है-जिस लक्ष्मीके प्रसादसे अत्यंत भक्त "पुत्रादिकमें भी धनापहारकी
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