________________
अनगार
भावार्थ-हिंसामय आचरणके उपदेष्टा और कर्ता दोनोंकी संगतिसे सम्यग्दर्शन मलिन होता है। तीन मूढताओंका परित्याग होना सम्यग्दृष्टिका भूषण है, ऐसा उपदेश देते हैं:
यो देवलिङ्गिसमयेषु तमोमयेषु, लोके गतानुगतिकेप्यपथैकपान्थे । न द्वेष्टि रज्यति न च प्रचाद्विचारः,
सोऽमूढदृष्टिरिह राजति रेवतीवत् ॥ १०३ ॥ जिनमें बहुलतया अज्ञान पाया जाता है अथवा जो निबिड अन्धकारके समान साक्षात अज्ञानरूप हैं ऐसे देवों लिङ्गियों और समयोंमें-कुदेव कुगुरु और कुशास्त्रोंमें तथा न केवल इन्हीमें किंतु जगत्के उन सर्व साधारण व्यवहर्ता पुरुषों में भी, जो कि गतानुगतिक-विना किसी प्रकारका विचार किये ही किसीके भी उपदेशको सुनकर अथवा आचरणको देखकर उसीका अनुगमन या अनुवर्तन करने लगते हैं, तथा जो प्रायः करके नित्य उन्मार्गमें ही गमन करते हैं; विचारशील व्यक्तियों को राग तथा द्वेश न करना चाहिये । ऐसा करने से ही वे रेवती रानीकी तरहसे अमूढदृष्टि अंगको धारण कर इस लोकमें उद्दीप्त हो सकते हैं-सम्यक्त्वके आराधन करनेवालोंमें प्रकाशमान हो सकते हैं।
__ भावार्थ-प्रत्यक्ष अनुमान और आगम इनके द्वारा यथावस्थित वस्तुको व्यवस्थित करनेके कारणभूत क्षोदको विचार कहते हैं। प्रकर्षतया-देश काल और समस्त पुरुषोंकी अपेक्षासे जिसमें किसी भी प्रकारसे बाधा न आवे इस तरहसे विचारकी प्रवृत्ति करनेवालोंको उचित है कि वे कुदेव कुगुरु और कुशास्त्र तथा गतानुगतिक और सदा उन्मार्गगामी सर्वसाधारण लोगोंमें रागद्वेषको छोड-उपेक्षाभाव धारण करें तथा अमृढाष्टका पालन कर सम्यक्त्वका आराधन करें।
अध्याय